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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह सिर्फ इसीलिए नहीं कि आप ऐसा चाहते हैं। वह मेरे लिए मेरे साथ रहेगा। मैं उसे अपने साथ रखने के लिए आपसे कहीं ज्यादा उत्सुक हूँ। मेरे जीवनका यह एक सौभाग्य रहा है कि मुझे ऐसे साथी मिलते रहे हैं जिनको अपने साथ रखनेमें मैं सम्मान और सुख महसूस करता हूँ। ऐसे साथियोंमें कृष्टोदासका एक खासा स्थान है।

यह उत्तर मैंने आपकी कलमसे लिखा है। आपने जो पहली कलम मुझे भेजी थी, उसे मैं बहुत कीमती मानता था और हमेशा अपने साथ रखता था। मैंने जेलमें वह कलम इन्दुलालको लिखनेके लिए दी थी। उन्होंने उसे खराब कर दिया। फिर उन्होंने उसे मरम्मतके लिए बाहर भेजा। जिस मित्रको वह काम सौंपा गया, उसने वह बहुमूल्य कलम खो दी। इसलिए कृष्टोदासने मुझे यह कलम दी है। अभी उसीसे लिख रहा हूँ। मुझे छपाईके दो ऑर्डर भी मिले हैं। इतना ध्यान रखनेके लिए आप मेरा धन्यवाद स्वीकार कीजिए। एक और कृपा कीजिए---तार द्वारा वचन दीजिए कि आप कृष्टोदासके बारेमें आगेसे कभी चिन्ता नहीं करेंगे।

आपका,br>मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ५५९७) की फोटो-नकलसे।

७९. पत्र: वसुमती पण्डितको

भाद्रपद सुदी १० [८ सितम्बर, १९२४][१]

चि० वसुमती,

तुम्हारे दो पत्र मिले। तुम्हारा ठिकाना निश्चित न होनेके कारण मैंने तुम्हारे पहले पत्रका उत्तर नहीं दिया। वहाँ तो तुम्हारी तबीयत अच्छी रहनी चाहिए। अपना स्वास्थ्य पूरी तरह सुधार लो। मेरी यात्राके बारेमें अभी कुछ निश्चय नहीं हुआ है। इस सप्ताहमें पता चलेगा।

बापूके आशीर्वाद

श्रीमती वसुमती पण्डित
मार्फत-श्री अम्बालाल मथुरादास
मेसर्स स्ट्रॉस ऐंड कम्पनी बटाला
पंजाब

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४५५) से।

सौजन्य: वसुमती पण्डित

  1. पत्रपर प्राप्तिकी तारीख, १२-९-१९२४ दी हुई है।