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८१. पत्र: जमनालाल बजाजको

भाद्रपद सुदी १२ [१० सितम्बर, १९२४][१]

चि० जमनालाल,

तुम्हारा हाथ अब बिलकुल दुरुस्त हो गया होगा। मेरा पिछला पत्र मिला होगा।[२] मेरे चित्तमें अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। उसका पूरा दर्शन इस समयके 'यंग इंडिया में आयेगा। वोट लेकर हमें बहुमत नहीं बनाना चाहिए, इतना मुझे अभी तो लगता है। बेलगाँवमें यदि हमको ज्योंका-त्यों काम करनेका अवसर न मिले तो हमें अलग होकर जितना बन सके उतना काम करना चाहिए। मैं यह देख रहा हूँ कि जो जहर अभी फैल रहा है वह उसके बिना नष्ट नहीं होगा। इतना तो मानता हूँ कि कैसे भी हो हम उसका मुकाबला कर सकेंगे। दिल्ली जानेके लिए तारकी राह देख रहा हूँ। वहाँ जाना पड़ा तो हिन्दू-मुस्लिम समस्याके विषयमें कुछ रास्ता निकलनेकी सम्भावना है।

अभीतक यह पता नहीं चला कि वहाँ दंगा कैसे हुआ।

घटवाईके[३] भाषण अभी देखे। यदि इसी तरह बोला हो तो मेरा धन्यवाद बेकार हो गया। इस भाषणमें अहिंसा नहीं है।

बालकृष्ण[४] आ गया यह ठीक हुआ। अपनी इच्छाके अनुसार भले वहाँ रहे। इसके साथ जो पत्र है वह उसे दे देना। अक्तूबर में तुम भी आओगे न?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २८५१) से।

८२. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

भाद्रपद सुदी १२ [१० सितम्बर, १९२४][५]

तुम्हें चिरंजीव तारामतीके[६] बीमार होनेका दुःख होना स्वाभाविक ही है। लेकिन उसे दुःख न मानना ही हमारे लिए स्वाभाविक होना चाहिए। जो भी परिस्थिति आ पड़े, उसका सामना तटस्थ भावसे करना ही धर्म है। ऐसा जाननेके बाद

  1. आगामी बेलगाँव कांग्रेसके उल्लेखसे
  2. देखिए, "पत्र: जमनालाल बजाजको", ६-९-१९२४।
  3. नागपुर-क्षेत्रके एक कांग्रेसी।
  4. बालकृष्ण न० भावे, सत्याग्रह आश्रमके एक अन्तेवासी।
  5. साधन-सूत्रमें यही तारीख दी गई है।
  6. मथुरादास त्रिकमजीकी पत्नी।