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टिप्पणियाँ

हमें दुःख क्यों मानना चाहिए? दुःख न माननेका अर्थ कठोर होना नहीं है। जिन्हें हमसे सहायताकी अपेक्षा करनेका अधिकार है, उनकी सेवामें कोई कमी क्यों रहे? तारामतीकी यह बीमारी चली जायेगी; लेकिन मैं अब भी चाहता हूँ कि उसकी प्रसूति किसी अच्छे स्थानपर कराई जाये। दलालकी सलाहकी जरूरत जान पड़े तो ले लेना। आनन्दको हिम्मत देना। मुझे रोज समाचार देते रहना।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी

८३. पत्र: तारामती मथुरादासको

{{right|भाद्रपद सुदी १२ [१० सितम्बर, १९२४][१]

तुम्हारे बीमार पड़नेका पत्र मुझे आज ही प्राप्त हुआ है। तुम तनिक भी चिन्ता न करना। स्वस्थ अवश्य होना है--ऐसा दृढ़ निश्चय रखना और रामका नाम जपती ही रहना। यह जप बीमारीके कष्टको कम करेगा और बीमारीको भी दूर करेगा। अभी तुम्हारी इसी देहमें, मुझे तुमसे बहुत सेवा लेनी है। स्वस्थ होकर मुझे अवश्य पत्र लिखना। ईश्वर तुम्हें दीर्घायु करे!

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी,

८४. टिप्पणियाँ

आगामी १५ तारीख

सूतकी दूसरी किस्तका महीना जल्द ही आनेवाला है। पहले महीनेमें सूत कातनेवालोंकी संख्या २,७८० थी। इसमें प्रतिनिधि और अन्य लोग सभी शामिल हैं। कितने ही लोगोंसे और जगहोंसे सूत न भेज पानेके उचित कारण प्राप्त हुए हैं। कुछ लोग तो यह भी नहीं जानते थे कि जो प्रतिनिधि नहीं हैं, उनको भी सूत भेजना है। इसलिए इस दूसरे महीनेके दौरान सभी प्रान्तोंमें बहुत प्रगतिके प्रमाण मिलने चाहिए। कतैयोंसे अनुरोध है कि वे नीचे लिखी बातोंपर ध्यान देंगे:

१. सूत एक-सा भेजें। जब अच्छी पूनियाँ और अच्छी रुई मिले, तब २० अंकसे कमका सूत न कातें। उन्हीं कतैयोंने अलहदा-अलहदा अंकका सूत भेजा है। हर कतैयेको ध्यान रखना चाहिए कि बुनाईके समय एक अंकके सूतमें दूसरे अंकका सूत नहीं मिलाया जा सकता।

  1. साधन-सूत्रमें यही तारीख दी गई है।