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अपनी खुशीसे कातना मंजूर करते हैं, तब पैसेकी दृष्टिसे ऊँचे अंकका सूत कातने में ही बचत होती है। यदि कोई १० के बजाय २० अंकका सूत कातता है तो वह कपासकी करीब-करीब आधी कीमतकी बचत करता है। अतएव बेहतर होगा कि कतैये अँगुलियों और आँखोंके जरा सध जानेपर ऊँचे अंकका सूत कातनेकी कोशिश करें।

धर्मकी दृष्टिसे देखें तो कोई ४० मुसलमानों और लगभग इतने ही पारसियोंने अपने हिस्सेका सूत भेजा है। हाँ, कुछ ईसाइयों के नाम भी मिलते हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सदस्योंमें से १०४ ने अपने हिस्सेका सूत भेजा है। कार्य सिर्फ तीनको छोड़कर, तमाम सदस्योंने अपना सूत भेजा है। देशके अत्यन्त प्रख्यात पुरुषोंमें, जो कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य नहीं हैं, दो सज्जनोंने सूत भेजा है। वे हैं--मौलाना अब्दुल बारी साहब और आचार्य प्रफुल्लचन्द्र राय।

प्रतिनिधियोंके अतिरिक्त

आम तौरपर लोग अभी यह महसूस नहीं करते कि कांग्रेस प्रतिनिधियोंके लिए जहाँ नियमित रूपसे कताई करना अनिवार्य है, वहाँ कताईके सद्गुणमें विश्वास रखनेवाले अन्य सब लोग भी इस कर्त्तव्यसे बिलकुल मुक्त नहीं हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीका प्रस्ताव तो इस बातका संकेत-मात्र है कि प्रत्येक देशभक्तका क्या कर्त्तव्य है। इसलिए यदि सभी प्रान्त स्वेच्छया कताईके लिए अपने-आपको संगठनसूत्रमें बाँध लें, तो वे पायेंगे कि विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार अपेक्षाकृत सरल चीज है। इसमें जो दो बाधाएँ बतलाई जाती है, वे हैं खद्दरका मँहगापन और खुरदरापन। लेकिन जिस क्षण लोग पारिश्रमिकका खयाल किये बिना एक प्रेम-कार्यके रूपमें कताई करने लगेंगे उसी क्षण ये दोनों बाधाएँ दूर हो जायेंगी और जिस उद्देश्यके लिए हम स्वर्गीय शास्त्री चिपलूणकर और बंग-भंगके समयसे ही उद्योग करते आ रहे हैं, उसकी प्राप्तिके लिए प्रेम-भावसे कताई शुरू कर देना कोई बड़ा मूल्य चुकाना नहीं है। सदस्योंको इसकी राह भी नहीं देखते रहना चाहिए कि प्रान्तीय कमेटियाँ आगे आकर कताईका आयोजन करें। पर्याप्त जानकारी और क्षमता रखनेवाला प्रत्येक व्यक्ति कताई मण्डलका आयोजन कर सकता है। इसमें बहुत थोड़े पैसे की जरूरत है। थोड़ी-सी कपास जमा करना, पूनियाँ तैयार करना और उनका वितरण करना तथा सूत इकट्ठा करना--बस इतनेकी ही जरूरत है। ज्यादा जगहकी भी जरूरत नहीं है। गरीबसे-गरीब आदमी भी यह काम करनेकी कोशिश कर सकता है। जहाँ चरखा न मिले वहाँ तकलीसे काम चल जायेगा। इसलिए मुझे आशा है कि दूसरे महीने में अब जो सूत प्राप्त होगा, वह न केवल कातनेवाले प्रतिनिधियोंकी संख्यामें वृद्धिका द्योतक होगा, बल्कि इस बातका भी प्रमाण होगा कि कताई करनेवाले गैर-प्रतिनिधि लोगोंने भी काफी ज्यादा सूत भेजा है।

योग्य कार्य

यह खुशकिस्मतीकी बात थी कि पिछले हफ्तेके हिन्दू-मुस्लिम दंगेमें जमनालालजी भी मौकेपर मौजूद थे। उसमें उन्हें जो चोट आई वह झगड़ा न बढ़नेका एकमात्र