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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं तो एक कारण अवश्य था। मुझे मालूम हुआ है कि स्थानीय कांग्रेस कमेटीके मन्त्री बाबू कालीचरण और श्रीयुत अवारी भी खुद बहुत जोखिम उठाकर लड़ाई रोकनेकी कोशिश कर रहे थे। मैं इन तीनों कार्यकर्त्ताओंको उनके साहस और विवेकके लिए बधाई देता हूँ। बहुत मुमकिन है कि स्थायी सुलह और शान्तिके लिए हममें से कुछ लोगोंको अपने-आपको बलिदान करदेना पड़े। दोनों जातियोंके बदमाशों और गुण्डोंको एक-दूसरेके खिलाफ संगठित करके हम अपनी पीढ़ीके दौरान ऐसी एकता स्थापित नहीं कर सकते। इस तरहका आपसी कलह हमारी शक्तिके निरर्थक क्षयकी प्रक्रिया है। इसके द्वारा प्राप्त की गई शान्ति शस्त्रबलपर प्राप्त की गई शान्ति होगी, जिसके कारण हमें दीर्घकालतक एक-दूसरेका सिर फोड़ते रहना होगा।

वाइकोम सत्याग्रह

त्रावणकोरकी संरक्षिका (रीजेंट) महारानीने सभी सत्याग्रही बन्दियोंको रिहा करके अपनी उदारताका परिचय दिया है। मैं इसके लिए उनको बधाई देता हूँ। राज्यकी यह एक बड़ी ही सुन्दर प्रथा है कि नये शासकके गद्दीनशीन होनेपर कुछ बन्दियोंको रिहा कर दिया जाता है। फिर इससे अधिक स्वाभाविक बात और क्या हो सकती है कि ऐसे बन्दियोंको रिहा किया जाये जिनके सिर अपराधका कोई कलंक न हो? मैं सत्याग्रहियोंको भी फिलहाल सत्याग्रह स्थगित कर देनेके लिए बधाई देता हूँ। इससे एक-दूसरेको समझानेका रास्ता सुगम हो गया है और राज्यके अधिकारियोंको भी बिना किसी परेशानीके सत्याग्रहियोंके प्रति अपने रुखके बारेमें फिरसे सोचनेका मौका मिला है। कहते हैं, स्वर्गीय महाराज कई मामलोंमें बड़े जागरूक होते हुए भी अस्पृश्यताके बारेमें बड़े ही कट्टर विचार रखते थे। मुझे आशा है कि अब महाविभव संरक्षिका महारानी यह महसूस करेंगी कि अस्पृश्यता हिन्दूधर्मके लिए कोई श्रेयकी नहीं, बल्कि कलंककी बात है। एक हिन्दू राज्य हिन्दू धर्मकी अच्छीसेअच्छी सेवा यही कर सकता है कि हिन्दू धर्मको इस अभिशापसे मुक्त कराये और इस प्रकार ब्रिटिश भारतके हिन्दुओंके सामने धार्मिक उदारताका एक उदाहरण पेश करे। मुझे विश्वास है कि सत्याग्रही लोग भी अपना संयम कायम रखकर और अधिकारियोंको स्पष्ट रूपसे यह जताकर कि अनुपगम्यों और अस्पृश्योंके बिलकुल बुनियादी मानवीय अधिकारोंको मान्यता दिलानेसे अधिक वे कुछ नहीं चाहते, अधिकारियोंका मार्ग सुगम बनायेंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक

हुबलीसे मेरे पास एक काफी लम्बा पत्र आया है। उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवकोंके संगठनकी ओर मेरी तथाकथित उदासीनताके प्रति विरोध प्रकट किया गया है। मैं पत्र-लेखक और अन्य लोगोंको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं उदासीन नहीं हूँ। मैं इसे एक बहुत ही जरूरी काम मानता हूँ। मैं इस मामले में डा० हार्डीकरकी योग्यताका बड़ा प्रशंसक हूँ। लेकिन मेरे सामने कठिनाई यह है कि सारे भारतको संगठित करनेके लिए हमारे पास काफी तादादमें आदमी नहीं हैं। इसीलिए मैंने सुझाया है कि