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टिप्पणियाँ

डा० हार्डीकरको अभी किसी एक प्रान्त या जिलेमें ही अपनी सारी शक्ति लगानी चाहिए और उस क्षेत्रके स्वयंसेवकोंके दलको पूरे तौरपर सक्षम बना देना चाहिए। तब फिर दूसरे क्षेत्रोंको संगठित करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। यह काम ऐसा है कि समाचारपत्रों के प्रचारके बलपर नहीं किया जा सकता। यह तो चुपचाप अथक परिश्रम करके ही सम्पन्न किया जा सकता है। हुबलीसे यह पत्र जिस सप्ताह मुझे मिला, उसी सप्ताह अलमोड़ासे भी एक पत्र आया। पत्र लेखकका कहना है:

बालचर आन्दोलन तो फैल रहा है, लेकिन कुछ ही लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक बनते हैं।

ऐसा क्यों? इसलिए कि वह आन्दोलन बहुत ही कुशल ढंगसे संगठित किया गया है। जो काम बालचर करते हैं, उसमें ऐसा कुछ नहीं है जिससे उस कामको, जोकुछ हमें करना चाहिए, उससे बढ़-चढ़कर माना जाये। कमी सिर्फ इतनी ही है कि हमारे पास इस कामके लिए पर्याप्त संख्यामें उपयुक्त संगठनकर्त्ता नहीं हैं। कवायद, अनुशासन और शिक्षाकी राष्ट्रको जरूरत है और उसे जहाँ भी ये चीजें मिलती हैं, वह इनको ग्रहणकर लेता है। मैं जानता हूँ कि यह बात बुरी है, इससे विवेकका अभाव प्रकट होता है। लेकिन राष्ट्र तबतक इस परावलम्बनकी परवाह नहीं करता जबतक कि उसे वे चीजें मिल रही हैं, जिन्हें वह आवश्यक समझता है। इस बुराईको महसूस करनेवाले हम-जैसे कार्यकर्त्ताओंको यह करना है कि हम अपने-आपको प्रशिक्षित करें। लेकिन हम ऐसा लिखने या भाषण देनेसे नहीं कर सकते। हमें सबसे पहले तो अपने-आपको प्रशिक्षित करना चाहिए। करनेके लिए तो बहुत-से काम हैं। हममें से प्रत्येकको अपना काम चुन लेना चाहिए और फिर बाधाओंके होनेपर भी हमें उसीमें जुटे रहना चाहिए। हमें बहुत विस्तारकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। हमें तो उतना ही काम चुनना चाहिए, जितना कि हम अच्छे-अच्छे ढंगसे कर सकते हों। लोगों को ऐसा समझने की गलती नहीं करनी चाहिए कि यदि मैं स्वयंसेवकोंके आन्दोलनके बारेमें लिखता नहीं हूँ तो में ठीकसे उसपर नजर भी नहीं रख रहा हूँ। मैं अध्यक्ष रहूँ या न रहूँ, पर मुझे पूरी आशा है कि आगामी दिसम्बर महीने में कर्नाटकमें हमारे लिए जो अनेक आकर्षण होंगे, उनमें कर्नाटकके स्वयंसेवक दलका भी एक खासा स्थान होगा।

एक भद्दी तुलना

एक रोमन कैथोलिक पत्र-लेखकने, जो कथोलिक इंडियन एसोसिएशन के मन्त्री हैं, मुझे एक लम्बा पत्र लिखा है। उसके कुछ अंश में नीचे दे रहा हूँ:[१]

पत्र-लेखकको ऐसी तुलनासे जो दुःख पहुँचा है, वह बिलकुल स्पष्ट है। उनके प्रश्नके उत्तरमें मैं जो बात पहले कह चुका हूँ उसीको फिर दोहराता हूँ; अर्थात् यह

  1. इन भ्रंशका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने कुछ लोगों द्वारा गांधीजीकी तुलना ईसा मसीहसे करनेपर और उन्हें भारतीयोंके लिए आधुनिक ईसा मसीहका पद देनेपर आपत्ति की थी। उसने यह भी लिखा था कि जहाँ ईसा मसीह राजनीतिले बिलकुल अलग रहे, गांधीजी उसमें डूबे हुए हैं।