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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि मैं ऐसी तुलना कतई पसन्द नहीं करता। इनसे कोई लाभ भी नहीं होता और जिन महान् आत्माओंके साथ मेरी तुलना की जाती है, उनके अनुयायियों को ठेस भी लगती है। मैं ऐसी किसी दैवी शक्तिका दावा नहीं करता जो दूसरोंमें न हो। मैं नहीं कहता कि मैं कोई पैगम्बर हूँ। मैं तो सत्यका एक अकिंचन अन्वेषक भर हूँ और मैं उसे पानेके लिए कटिबद्ध हूँ। ईश्वरका साक्षात्कार करने के लिए मैं बड़ेसे-बड़े बलिदानको भी तुच्छ मानता हूँ। मेरी सभी गतिविधियाँ---आप उनको सामाजिक, राजनीतिक, मानवीय या नैतिक, जो भी कहें--इसी लक्ष्यकी ओर निर्दिष्ट हैं। और चूँकि मैं जानता हूँ कि ईश्वर उच्च और शक्तिशाली व्यक्तियों की अपेक्षा अपनी सृष्टिके तुच्छतम प्राणियोंमें ही अधिकतर मिलता है, इसलिए मैं उनके स्तरतक पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। मैं उनकी सेवाके बिना वैसा नहीं कर सकता। इसीलिए दलित वर्गोंकी सेवा के लिए मेरे अन्दर इतना उत्साह है। चूँकि मैं राजनीतिमें उतरे बिना उनकी सेवा नहीं कर सकता, इसीलिए राजनीति में पड़ा हूँ। इस प्रकार मैं कोई मसीहा नहीं हूँ। मैं तो भारतका और इसीलिए समूची मानवताका केवल एक संघर्ष-रत, भ्रान्त और तुच्छ सेवक हूँ।

असन्तोषजनक उत्तर

पाठकों को याद होगा कि पण्डित जवाहरलाल नेहरूने २५ जुलाईको नाभा के प्रशासकको लिखा था कि मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं कि मेरी, आचार्य गिडवानी और पण्डित सन्तानमकी कैद पूरी होनेसे पहले रिहाईपर कोई शर्तें भी लगाई गई थीं। प्रशासकको उसका उत्तर भेजने में २७ दिन लग गये। उत्तर इस प्रकार है:

मैं आपके पिछली २५ जुलाईके पत्रके उत्तरमें बताना चाहता हूँ कि "मुल्तवी" शब्द के अर्थके बारेमें आपको कुछ भ्रम है। सजा मुल्तवी करनेका मतलब ही यह है कि उसके साथ कुछ शर्तें जुड़ी हुई हैं। यदि बात ऐसी नहीं होती और आपकी दलील बिलकुल ठीक होतो, तो बिना शर्त सजा मुल्तवी करनेका मतलब सजा मंसूख करना होता, जो साफ गलत मालूम पड़ता है।

ऐसी हालतमें मैं पत्र-व्यवहारका यह सिलसिला जारी रखनेमें कोई सार नहीं देखता।

इसमें पण्डित जवाहरलालको "मुल्तवी" शब्दका अर्थ समझानेकी खूब कोशिश की गई है। लेकिन प्रशासकका दुर्भाग्य तो यह है कि पण्डितजीने उनसे यह नहीं पूछा था कि "मुल्तवी" शब्दका क्या अर्थ है। वे तो यह जानना चाहते थे कि रिहाई पर लगाई गई शर्तों के बारेमें उनको क्यों नहीं बतलाया गया। क्या कैदीको यह जाननेका अधिकार नहीं है कि उसकी सजा "मुल्तवी" कर दी जानेपर उसे किन शर्तोंपर छोड़ा जा रहा है? प्रशासक महोदयको यह भी जानना चाहिए कि सजाकी माफी पर भी शर्तें लगाई जा सकती हैं। श्री सावरकरकी सजा शर्तोंके साथ माफ की गई है। इस तरह प्रशासकका जवाब खुद अपनी ही बात काट देता है; क्योंकि इस जवाबसे प्रकारान्तरसे स्पष्ट हो जाता है कि सजा मुल्तवी करने की शर्तें पण्डितजीको