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टिप्पणियाँ

नहीं बतलाई गईं और वास्तव में अभीतक उनको उन शर्तोंकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। उदाहरण के लिए, क्या सजाकी तारीखसे दो साल पूरे हो चुकनेके बाद भी नाभा क्षेत्रमें प्रवेश करनेपर उनको पुरानी सजाके अन्तर्गत फिर कारावास दिया जा सकता है? प्रशासकको चाहे "पत्र-व्यवहारका यह सिलसिला जारी रखनेमें कोई सार नहीं दिखाई देता" हो; लेकिन जनताको न केवल राजा मुल्तवी करनेकी शर्तें जाननेका हक है, बल्कि यह जाननेका भी अधिकार है---और यह जानना उसके लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है---कि क्या यह सच नहीं कि पण्डित जवाहरलाल और उनके साथियों को यह नहीं बताया गया कि उनकी रिहाईके साथ क्या शर्तें लगाई गई हैं, और यदि ऐसी बात है तो क्या आचार्य गिडवानीको जेलमें डाल देनेका औचित्य किसी आधारपर सिद्ध किया जा सकता है।

अनुकरणीय उदाहरण

मैं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समितिकी विज्ञप्ति (२०-८-२४) का एक अंश नीचे दे रहा हूँ:

तहसील कसूरके काछा गाँवमें एक मसजिदमें मुसलमानोंके नमाज पढ़ने के समय अजान देनेके हकको लेकर सिखों और मुसलमानोंके बीच लम्बे अर्सेसे झगड़ा चल रहा था। बात इतनी बढ़ गई थी कि मामला अदालत तक पहुँच गया। अदालतने मुसलमानोंके खिलाफ फैसला दिया। नतीजा यह हुआ कि गाँवमें मुसलमान नमाजकी अज्ञान नहीं दे सकते थे। १० और ११ अगस्तको भाई फेरूके लिए जाते हुए ५०० अकालियोंका एक जत्था जब गाँवमें पहुँचा तो मुसलमान भाइयोंने अपना मामला उनके सामने पेश किया और अनुरोध किया कि उसपर हमदर्दी के साथ गौर किया जाये। जत्थेने समाजके सभी तबकोंके लिए धार्मिक पूजाकी स्वतन्त्रता के उसूलको मानते हुए, उसके मातहत फैसला किया कि सिखोंको किसी भी कौमकी धार्मिक पूजाके रास्तेमें बाधक नहीं बनना चाहिए और इसलिए मुसलमान लोग अजान दे सकते हैं। गाँवकी सिख संगतने जत्थेका यह फैसला सिर माथे लिया और अपने कियेपर पछतावा किया; साथ ही मसजिदकी मरम्मतके लिए २० रुपये चन्दा भी दिया। जत्थेके फैसलेपर तुरन्त अमल हुआ और इस तरह इतने लम्बे अर्सेसे चले आ रहे एक ऐसे झगड़ेका सौहार्दपूर्ण ढंगसे निबटारा हो गया, जिसे अदालतने और ज्यादा भड़का दिया था। इस शुद्ध न्यायके कार्यके लिए मुसलमान भाइयोंने जत्थेको धन्यवाद दिया और इसपर अपनी खुशी प्रकट करनेके लिए बैंड बाजेवालोंका एक दल भेजा जिसने जत्थेके शिविरमें आकर लगातार पाँच घंटेतक बैंड बजाया।

मैं इस झगड़े को इतने अच्छे ढंगसे निबटानेके लिए सम्बन्धित सिखों और मुसलमानों, दोनोंको बधाई देता हूँ। ध्यान देनेकी बात यह है कि सिखोंने अपना एक