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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसा हक छोड़ दिया जो उनको अदालतने दिलाया था। जिनको अदालतोंका अनुभव है वे जानते हैं कि अदालतें अक्सर ऐसे फैसले दे देती हैं जो न्याय और समझदारीके खिलाफ पड़ते हैं और इसमें उनकी कोई गलती भी नहीं होती। उनके लिए भावनाओं या पूर्वग्रहोंकी ओर ध्यान देनेकी गुंजाइश ही नहीं है। लेकिन धार्मिक झगड़ोंमें तो यही चीजें सबसे ज्यादा महत्त्व रखती हैं। इसलिए इस प्रकारके मामलोंमें न्यायपूर्ण फैसला सिर्फ पंच ही कर सकते हैं, जो ऐसी तमाम बातोंका ध्यान रखना अपना कर्त्तव्य समझेंगे, जिनसे दोनों पक्षोंके बीच न्यायपूर्ण और सम्मानप्रद सुलह करानेमें सहायता हो सकती है।

कांग्रेसियों द्वारा जालसाजी

कहा जाता है कि गरीब उड़ीसा प्रान्तमें कांग्रेसी कहलानेवाले कुछ लोगोंने कांग्रेसके कोष में से कई हजार रुपयेकी रकमका गबन किया है। एक शख्सने तो बिलकुल सन्तका बाना ले लिया और लोगोंको दिखाने लगा कि वह बड़ी लगनसे काम कर रहा है, जिसके फलस्वरूप उसका असर काफी बढ़ गया और जनताका विश्वास उसपर इतना जम गया कि उसे एक बड़े विश्वस्त पदपर नियुक्त कर दिया गया। इस जालसाजीके खिलाफ कार्रवाई करनेका सवाल बड़ा ही गम्भीर बन गया और अब भी बना हुआ है। यह मामला मेरे पास भेजा गया। मैंने बिना किसी हिचकके यही सलाह दी कि मुकदमा दायर किया जाना चाहिए और साथ ही यह सुझाव भी दिया कि जालसाजी करनेवाले शख्स को भरोसेका काम सौंपनेवाले कांग्रेस पदाधिकारीको मुकदमे की कार्रवाई खत्म होनेपर यदि जरूरत पड़े तो अदालतोंके बहिष्कार-प्रस्तावका उल्लंघन करनेके अपराधपर अपने पदसे इस्तीफा दे देना चाहिए। अदालतोंके बहिष्कारके अपने इस प्रस्तावका हम तथाकथित कांग्रेसियोंको खुद कांग्रेसके ही साथ धोखा करनेके लिए इस्तेमाल नहीं करने दे सकते। वैसे तो साधारण लोगोंको भी, अगर वे असहयोगी हैं तो ऐसी हरकतोंसे होशियार रहना चाहिए जो उनको मुकदमोंमें फँसा दे सकती हैं। लेकिन जहाँतक खुद कांग्रेसियों और कांग्रेसके अपने अन्दरूनी मामलोंका---दूसरे शब्दोंमें विश्वास के मामलों में,---सवाल है, यदि मक्कार लोग कांग्रेसी बनकर और बहिष्कारकी आड़ लेकर इस संस्थाको ही धोखा देने लगें तो बहिष्कारका ध्येय ही खत्म हो जायेगा। यही कारण है कि कथनी और करनीमें भेद रखनेवाला माने जानेका खतरा मोल लेकर भी मैंने बिना किसी हिचकके उड़ीसाके कांग्रेस पदाधिकारियोंको यह सलाह दी है कि वे न्यासकी रकम वसूल करनेके लिए जालसाजोंके खिलाफ मुकदमा दायर करें और तब यदि जरूरत पड़े तो अपने पदसे इस्तीफा दे दें। अगर मैं कांग्रेस कमेटीका अध्यक्ष होता तो न केवल सम्बन्धित पदाधिकारीको मुकदमेकी कार्रवाई शुरू करनेकी इजाजत देता, बल्कि उसके इस्तीफा दे देनेके बाद उसकी कर्त्तव्य निष्ठाके पुरस्कार-स्वरूप उसे फिर उसी पदपर नियुक्त करनेकी भी पूरी कोशिश करता। कांग्रेस-कोषकी रकमको सुरक्षित रखना भी उतना ही बड़ा कर्तव्य है जितना कि अदालतोंका बहिष्कार जारी रखना। सच तो यह है कि कांग्रेसका पदाधिकारी व्यक्ति, जो प्रतिनिधिकी हैसियतसे वादी या मुद्दई हो,