पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२७
वास्तविकताएँ

कांग्रेसके प्रस्तावका कोई उल्लंघन नहीं करेगा। उस सूरतमें, उल्लंघन तो कांग्रेस संस्था करती है और कांग्रेसको अपने हितमें अपने ही बनाये नियम तोड़नेका पूरा हक है। सुव्यवस्थित राज्यमें यह उक्ति कि "राजा कोई गलती नहीं करता" सही और सार्थक है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया,११-९-१९२४

८५. वास्तविकताएँ

आजकल मेरे 'यं० इं०' के लेखों में आज एक बात तो कल दूसरी बात दिखाई देती है। बहुत सम्भव है, पाठक इससे चक्करमें पड़ते हों और हैरान होते हों। पर मैं उन्हें यकीन दिलाता हूँ कि इन्हें वे तब्दीलियाँ न समझें बल्कि यह समझें कि जिस दिशाकी ओर हम जा रहे हैं अथवा हमें जाना उचित है, उसमें हम एक-एक कदम आगे बढ़ रहे हैं। हम जिन सिद्धान्तोंका पालन करनेका दावा करते हैं, उनके ये सहज परिणाम ही हैं।

यदि हम इस बातको याद रखें कि असहयोगकी अपेक्षा अहिंसा अधिक महत्त्वपूर्ण है और अहिंसा के बिना असहयोग पाप है, तो मैं आजकल जिन विचारोंका निरूपण इन पृष्ठोंमें कर रहा हूँ, वे सूर्यके प्रकाशकी तरह स्पष्ट हो जायेंगे। पर मुश्किल यह है कि पाठक इस बातको बहुतांशमें नहीं जानते कि परदेके पीछे क्या-कुछ हो रहा है। मैं अभीतक जो सब बातोंको खोलकर नहीं बता रहा हूँ, वह कुछ तो जान-बूझकर और कुछ लाचारीके कारण। पल-पलमें और दिन-दिन एकके बाद दूसरी बातका फैसला अपने साथियोंतक पहुँचाना मुश्किल है। मैं यही विश्वास करता हूँ कि चूँकि मेरी राय में वे मुख्य सिद्धान्तके सहज परिणाम हैं, इसलिए मेरे नजदीक वे जितने स्पष्ट हैं उतने ही पाठकोंके निकट भी होंगे।

बात यह है कि परिस्थिति के साथ-साथ हमारी गतिविधिमें भी फर्क होना चाहिए। ऐसे फर्क की उत्पत्ति यदि उसी एक उद्गमसे हो, तो वह असंगत नहीं हो सकता।

लेकिन यह बात तो हरएक समझ ही रहा है कि हमारे मतभेद दिनपर-दिन बढ़ते जा रहे हैं। हर दलके लोग अपने कार्यक्रमको सिद्धान्तका रूप दे रहे हैं। हर दलवाले सच्चे दिलसे इस बातको मानते हैं कि उनके ही कार्यक्रम द्वारा हम लोग अपने ध्येयके ज्यादा नजदीक पहुँचेंगे। देशमें जबतक ऐसे लोग मौजूद हैं--और उनकी संख्या काफी बड़ी है, भले ही वह दिन-दिन बढ़ न रही हो---तबतक धारा सभाओंके अन्दर जाकर काम करनेवाले दल भी मौजूद रहेंगे ही। पर हमारे इस असहयोगने तो अमली तौरपर सरकारसे असहयोगकी बनिस्बत आपसमें ही असहयोगका रूप धारण कर लिया है। अनचाहे ही हम एक-दूसरेको कमजोर बना रहे हैं और उस हदतक उस शासन-प्रणालीकी सहायता कर रहे हैं, जिसको मिटा देना हम सबका