पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उद्देश्य है। हमें इस प्रणालीकी सबसे बड़ी खासियत समझ लेनी चाहिए। यह प्रणाली परजीवी है और राष्ट्रीय जीवनकी गन्दगीसे अपने लिये पोषण प्राप्त करती है।

इस शासन-तन्त्रके मूलमें हिंसा है। उसके खिलाफ जीवन्त और सक्रिय अहिंसात्मक शक्ति उत्पन्न करना हमारे असहयोगका उद्देश्य था। पर बदकिस्मतीसे हमारा असहयोग कभी सक्रिय रूपमें अहिंसात्मक हुआ ही नहीं। हम तो निर्बलों और असहायोंकी शारीरिक अहिंसासे ही सन्तुष्ट रहे। इस शासन-प्रणालीको नष्ट करने का तात्कालिक प्रभाव न उत्पन्न कर सकनेके कारण हमारी यह असहयोगकी शक्ति दूनी ताकतसे हमपर ही उलट पड़ी है और यदि हम समय रहते न चेते तो वह हमको ही नष्ट करनेकी तैयारीमें है। ऐसी हालतमें मैंने तो अपनी तरफसे यह दृढ़ निश्चय कर लिया है कि मैं इस घरेलू लड़ाईमें शरीक न होऊँगा और साथ ही सब सम्बन्धित लोगोंसे भी यही दरख्वास्त करूँगा। यदि हम इस काममें आगे बढ़कर सहायक नहीं हो सकते तो कमसे-कम हमें इसमें कोई रुकावट नहीं डालनी चाहिए। मैं आज भी उसी दृढ़ताके साथ पाँचों बहिष्कारोंको मानता हूँ। पर अब मुझे यह साफ-साफ दिखाई देता है कि हम चाहे खुद निजी तौरपर उनपर अमल भले ही करें, पर आम तौरपर उनके अनुसार काम करनेके लायक वायुमण्डल नहीं है। यह बात [अहमदाबादकी] अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकके समय मेरी समझमें नहीं आई थी, पर अब स्पष्ट है। आज हमारे चारों ओर अविश्वास ही अविश्वास दिखाई देता है। हर कार्रवाई शककी नजरसे देखी जाती है और उसका गलत अर्थ लगाया जाता है। ऐसी हालतमें हम एक ओर जहाँ कैफियत-दर-कैफियतकी जंगमें मुब्तिला हैं, वहाँ दूसरी ओर दुश्मन हमारे दरवाजेपर खड़ा खुश हो रहा है और अपनी ताकतको जुटा और बढ़ा रहा है। हमें हर सूरतमें और हर हालतमें इससे बचना चाहिए।

इसलिए मैंने यह सुझाया है कि हम देशके तमाम मुख्तलिफ राजनीतिक दलोंका एक न्यूनतम समान कार्यक्रम तय करें और उसको प्राप्त करने के लिए सबको कांग्रेसके मंचपर सहयोग करने के लिए बुलायें। यह है हमारे आन्तरिक विकासका कार्य, जिसके बिना किसी प्रकारका बाहरी राजनीतिक प्रभाव सफलतापूर्वक काम नहीं कर सकता। जो राजनीतिज्ञ लोग बाहरी कामको भीतरी कामसे अधिक महत्त्व देते हैं या जो समझते हैं कि यह भीतरी काम बहुत देरसे फल देगा (दोनोंका एक ही मतलब है), उन्हें अपनी शक्ति बढ़ानेकी पूरी-पूरी आजादी रहनी चाहिए; पर मेरी रायमें यह काम कांग्रेस के बाहर होना चाहिए। कांग्रेसको तो दिनपर-दिन जनताका अधिकाधिक प्रतिनिधित्व करना चाहिए। वह अभीतक राजनीतिसे अछूती है। उसके अन्दर वैसी राजनीतिक चेतना नहीं है जैसी कि हमारे राजनीतिज्ञ भाई चाहते हैं। जनताकी राजनीति तो नमक और रोटीतक ही सीमित है। मैं इसमें घी किस तरह जोड़ें, क्योंकि लाखों लोग ऐसे हैं जो घी तो क्या तेलका भी स्वाद नहीं जानते। उनकी राजनीति तो जातिगत सम्बन्धोंमें तालमेल बैठानेतक ही सीमित है। फिर भी यह कहना बिलकुल ठीक है कि हम राजनीतिज्ञ लोग सरकारके खिलाफ जनताके प्रतिनिधिका काम जरूर करते हैं। पर यदि हम उसके तैयार होने के पहले ही उसका