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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(२) कांग्रेस अंग्रेजी मालके बहिष्कारको बन्दकर दे, बशर्ते कि शर्त (१) अमलमें लाई जाये।

(३) हाथ-कती और बुनी खादीका प्रचार, हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए प्रयत्न और हिन्दु सदस्योंके द्वारा छुआछत मिटाना--इतने ही कामोंतक कांग्रेस अपने प्रयास सीमित रखे।

(४) कांग्रेस मौजूदा राष्ट्रीय शिक्षा-संस्थाओंका संचालन करे; और अगर मुमकिन हो तो नवीन संस्थाएँ खोले तथा उन्हें सरकारके अंकुश या प्रभावसे अलग रखे।

(५) कांग्रेसके सदस्योंके लिए जो चार आना फीस है वह उठा ली जाये और उसकी जगह सदस्यताकी अर्हता हाथ कती-बुनी खादी पहनना, आध घंटा रोज सूत कातना और हर महीने कमसे-कम २,००० गज अपना काता सूत कांग्रेसको भेजना हो। जो सदस्य इतने गरीब हों कि रुईका खर्च न उठा सकें, उन्हें रुई मुहैया की जाये।

ऊपर मैंने कांग्रेसके संविधानमें जो क्रान्तिकारी परिवर्तन सुझाया है, उसके सम्बन्धमें कुछ खुलासा करनेकी जरूरत है। कांग्रेसके वर्तमान संविधानका मुख्य विधाता स्वयं में ही हूँ। इस उल्लेखके लिए पाठक मुझे क्षमा करेंगे। हमारा उद्देश्य इस संविधानको दुनियाका सबसे अधिक लोकतांत्रिक संविधान बनाना था और हमारी यह थी कि यदि उसे सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जाये तो बिना कुछ और किये ही हमें स्वराज्य मिल जायेगा। पर उसके अनुसार यथेष्ट रूपसे काम ही नहीं किया गया। हमारे पास सच्चे और सुयोग्य कार्यकर्त्ता काफी तादादमें न थे। हमें यह बात कबूल करनी होगी कि जिस उद्देश्यके लिए वह बनाया गया था उसके लिहाजसे वह असफल रहा है। हमारे रजिस्टरमें कभी एक करोड़ सदस्य भी दर्ज नहीं हो पाये। इस समय शायद सारे भारतमें कुल मिलाकर सदस्योंकी संख्या कोई दो लाखसे अधिक नहीं होगी; और इन दो लाखमें भी अधिकतर लोग ऐसे हैं जो सिवा चार आना देने और राय देनेके वक्त हाथ ऊँचा उठा देनेके हमारे काम-काजमें आम तौरपर दिलचस्पी नहीं लेते। लेकिन हमें जरूरत तो एक ऐसी संस्थाकी है जो प्रभावकारी फुर्तीसे काम करनेवाली, सुसंगठित, काम ठीक-ठीक और तुरन्त बजानेवाली हो और जिसमें बुद्धिमान, परिश्रमी और उद्योगी राष्ट्रीय कार्यकर्त्ता हों। एक ऐसी भीमकाय और सुस्त तथा जटिल संस्थाकी अपेक्षा जिसका अपना कोई दिमाग ही न हो, यदि थोड़े लोगोंका एक छोटा संगठन हो, तो हम अपने कार्यका अच्छा लेखा दे सकते हैं। इस प्रस्तावमें एक ही बहिष्कार कायम रखा गया है--विदेशी कपड़ेका। यदि हम चाहते हैं कि उसमें सफलता मिले तो ऐसा हम कछ समयतक कांग्रेसको मुख्यतया कतैयोंका संघ बनाकर ही कर सकते हैं। यदि हम एक ही भारी और महत्त्वपूर्ण रचनात्मक काममें सफल हो जायें तो यह हमारे लिए एक जबरदस्त फतह होगी। मैं मानता हूँ कि ऐसा महत्त्वपूर्ण रचनात्मक काम यदि कोई है तो वह है हाथ-कती और हाथ-बुनी खादीका उत्पादन। यदि हम चाहते हैं कि खादीका काम राष्ट्रीय दृष्टि से सफल हो तो चरखा ही उसका एकमात्र साधन है। यदि हम चाहते हैं कि राष्ट्र के कल्याण-साधनमें जनता भी स्थायी रुचि लेती रहे तो चरखा ही उसका एकमात्र साधन