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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सहाबा' नामक ग्रन्थमाला भेजी थी। चूँकि वे मुझे उर्दू सिखाते थे, इसलिए उन्होंने ये पुस्तकें मुझे सौंप दीं। मैंने पूरी लगनसे उन्हें पढ़ डाला। यद्यपि इन पुस्तकोंमें पुनरुक्ति दोष बहुत है और कई जगह लेखन संक्षिप्त होता तो बहुत सुन्दर लगता; फिर भी उनसे पैगम्बर साहबके अनेक साथियोंके किये हुए कामकी गहरी जानकारी मिलती थी, इसलिए उनमें मुझे बहुत ही आनन्द आने लगा। उनके जीवन जैसे एक जादूसा हुआ हो कैसे एकाएक बदल गये, पैगम्बरके प्रति उनकी कैसी अगाध भक्ति थी, दुनियाके धन-मानकी ओर वे कितने उदासीन थे, अपने जीवनकी सादगी साबित करने के लिए उन्होंने राज्यशक्तिका भी किस तरह उपयोग किया, धनकी लालसासे वे कितने मुक्त रहे, अपने पवित्र माने हुए कार्यके लिए जीवन समर्पित करने के बारे में वे सदा-सर्वदा कैसे तत्पर रहते थे--इन सब बातोंका इन पुस्तकों में सविस्तार और अत्यन्त विश्वसनीय वर्णन है। यदि कोई उनके जीवनकी तुलना भारतमें इस्लामके आजकलके प्रतिनिधियों के जीवन के साथ करे तो उसकी आँखोंमें शोकके आँसू आये बिना न रहेंगे।

'सहाबा' पढ़ने के बाद, मैं खुद पैगम्बर साहबके चरित्रपर आया। मौलाना शिवली के लिखे हुए ये दो बड़े-बड़े ग्रन्थ बेशक सुन्दर शैलीमें लिखे गये हैं। किन्तु मुझे जो शिकायत पैगम्बर साहबके साथियोंके विषयमें लिखी उक्त ग्रन्थ-माला के सम्बन्ध में है, वही इन ग्रन्थोंके बारेमें भी है--इनमें विस्तार बहुत ज्यादा है। परन्तु पश्चिममें जिसकी लगभग एक स्वरसे निन्दा की गई है और जिसे गालियाँ दी गई हैं, उसीके जीवनकी घटनाओंको एक मुसलमान लेखकने किस दृष्टिकोण से देखा-परखा है, यह सब जाननेकी मेरी उत्सुकता इस विस्तारके बावजूद बनी रही। दूसरी पुस्तक पूरी हो जाने के बाद, उस महान् जीवनके बारेमें पढ़ने के लिए पासमें कुछ और न होनेके कारण मुझे अफसोस हुआ। उसमें कुछ घटनाएँ ऐसी अवश्य हैं, जिन्हें मैं समझ नहीं सका और कुछ ऐसी हैं, जिन्हें मैं समझा नहीं सकता। परन्तु मैंने यह अध्ययन मनोरंजन अथवा आलोचनाके लिए तो किया नहीं था। मुझे तो उस महापुरुषके जीवनकी उत्कृष्टता जाननी थी, जिसका आज करोड़ों मनुष्योंके हृदयपर साम्राज्य है और यह चीज मुझे इन पुस्तकोंमें पूरी मात्रामें देखनेको मिली। अब मेरा यह विश्वास पहले से भी अधिक पक्का हो गया है कि मानव जीवनमें इस्लामने जो स्थान प्राप्त किया, वह तलवारके बलपर नहीं किया। उसका श्रेय तो कठोर सादगी, पैगम्बरके आत्म-विलोपनके भाव, उनकी टेक और अनुयायियोंके प्रति उनके गहरे प्रेम-भाव, उनके साहस और निडरता तथा अपने कार्यके प्रति और खुदाके प्रति उनके सम्पूर्ण विश्वासको है। अपने अभियानमें वे जो लगातार सफल होते गये और बाधाओंपर विजय पाते गये, उसका कारण उनके ये गुण ही थे, तलवार नहीं। पैगम्बर हो या अवतार, मैं किसी भी मनुष्यको पूर्ण नहीं मानता। इसलिए पैगम्बरके जीवनकी एकएक घटना और किस्सेका स्पष्टीकरण चाहनेवाले आलोचकका मैं समाधान कर ही सकूँ, यह मेरे लिए जरूरी नहीं है। मेरे लिए तो इतना ही जानना पर्याप्त है कि वे लाखों-करोड़ों में एक ऐसे नर-रत्न थे, जिसने ईश्वरसे डरकर चलनेका प्रयास किया, जो