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जेलके अनुभव-११ [चालू]

गरीबीमें मरा, जिसने अपने मृत शरीरके लिए किसी शानदार मकबरेकी कामना नहीं की और जो मृत्यु-शय्यापर भी अपने छोटेसे-छोटे ऋण-दाताओं तकको नहीं भूला। आजकलके मुसलमानोंमें जो पतनकारी असहिष्णुता या गलत तरीकोंसे परधर्मावलम्बियोंका धर्म-परिवर्तन करनेकी वृत्ति पाई जाती है, उसके लिए पैगम्बरको जिम्मेवार मानना उतना ही गलत है जितना कि आजके हिन्दुओंके अधःपतन और असहिष्णुताके लिए हिन्दू धर्मको जिम्मेवार ठहराना।

पैगम्बरके जीवन चरित्र के बाद मैंने दो खण्डोंमें लिखी अजेय हजरत उमरकी जीवनीका अध्ययन किया; और जब मैं अपने मनमें जेरूसलेमकी यात्रा करते उस महापुरुषकी कल्पना करता हूँ जो पड़ोसियोंकी शान-शौकतका अनुकरण करनेवाले अपने अनुयायियोंको फटकारता है, जो एक गिरजाघरमें इस भयसे इबादत नहीं करता कि इसी कारण भावी पीढ़ियाँ कहीं उसे मसजिद न बना डालें, जो पराजित ईसाइयोंके सामने भी समझौते की अत्यन्त उदार शर्तें रखता है और जब मैं अपने मनमें उस व्यक्तिकी तस्वीर खींचता हूँ जिसने यह घोषणा की कि इस्लामके किसी भी अनुयायीका वचन, भले ही उस अनुयायीको ऐसा कोई वचन देनेकी सत्ता प्राप्त न हो, उतना ही मूल्यवान है जितना कि स्वयं खलीफाका लिखित फरमान, तो मैं सहज ही उसके प्रति श्रद्धानत हो उठता हूँ। वे वज्रके समान सुदृढ़ इच्छाशक्तिवाले आदमी थे। उन्होंने अपनी बेटी के साथ भी वैसा ही न्याय किया जैसा कि वे किसी अजनबी के साथ करते। आज हमारे यहाँ मूर्तियाँ तोड़ने, मन्दिर नष्ट करने और हिन्दुओंके भजन-कीर्तनके प्रति अन्धी असहिष्णुताका जो जोर दिखाई दे रहा है, मुझे लगता है, वह इस महानतम खलीफाके जीवनको एक बिलकुल उलटे अर्थ में समझनेका ही फल है। मुझे ऐसी आशंका है कि इस पवित्र और न्याय -परायण मनुष्य के कार्योंको आम मुसलमानोंके सामने विकृत रूपमें पेश किया जा रहा है। मुझे महसूस होता है कि अगर हजरत उमर खुद आज अपनी कब्र से उठकर हमारे बीच आयें, तो इस्लाम के कथित अनुयायियोंके बहुत से ऐसे कामोंको वे निंद्य और अस्वीकार्य बतायेंगे जो उनके भद्दे अनुकरणके रूपमें किये जाते हैं।

इस चित्ताकर्षक अध्ययनके बाद, मैं 'अल-कलाम' नामक तत्त्वज्ञानसे सम्बन्धित ग्रन्थोंकी तरफ मुड़ा। ये पुस्तकें समझने में मुश्किल हैं। उनकी भाषा बहुत पारिभाषिक हैं। परन्तु भाई अब्दुल गनीने मेरे अध्ययनमें सहायता देकर काफी आसानी कर दी। इसलिए जब इन ग्रन्थोंको आधा पढ़ जानेके बाद ही मैं बीमार हो जाने के कारण, रिहा कर दिया गया तो मुझे बड़ा दुःख हुआ।

अंग्रेजी पुस्तकोंमें गिबन-कृत रोमका इतिहास पहले नम्बरपर आता है। बरसों पहले मेरे अनेक अंग्रेज मित्रोंने उसे पढ़ने की मुझे सलाह दी थी। इस बार जेलमें गिबनको पढ़नेका मैंने निश्चय कर लिया था। लेखकने जिस ढंगसे एक विश्वसाम्राज्य स्थापित कर देनेवाले एक ही नगरके नागरिकोंके जीवनकी एकके बाद एक घटनाओंका वर्णन किया है, वह सचमुच पाठकोंके सामने आत्मा के इतिहास के पन्ने खोलकर रख देता है। कारण, गिबन सिर्फ छोटी-छोटी बातोंका वर्णन करते बढ़ते हों, सो तो बात ही नहीं है। वे तो तथ्योंके समग्र समूहोंको लेकर चलते हैं और उन्हें पाठकोंके