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९२. पत्र: चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

दिल्ली जाते हुए
१३ सितम्बर, १९२४

प्रियवर रा०,

मैं दिल्ली के रास्ते में हूँ। मैं वहाँ झगड़ने जा रहा हूँ। मैंने एस० के नाम लिखा आपका पत्र पढ़ा है। मैं उदास हूँ क्योंकि आप उदास हैं। क्या ही अच्छा होता, अगर आप मेरे साथ होते! जब हमारे अन्दर इतनी फूट पड़ी हुई है तब फिर आप इस तरह कैसे चला सकते हैं? आप 'यंग इंडिया' के ताजा अंक में प्रकाशित मेरा लेख[१] पढ़ें। जरूरत पड़े तो पचास बार पढ़ें, तब शायद आपके दिमागमें मेरा अर्थ स्पष्ट हो जायेगा। लेख सबसे अधिक आपके लिए ही लिखा गया है। एस० के नाम आपके पत्र से ही मुझे उसे लिखनेकी प्रेरणा मिली। राष्ट्रीय कार्यक्रममें से बहिष्कारको फिलहाल हटा देनेका मतलब यह तो नहीं है कि हम उसे छोड़ रहे हैं। यदि हमारे अन्दर विश्वासका बल मौजूद है तो हम कभी भी उसे पुनरुज्जीवित कर सकते हैं। अगर हमें अपने ऊपर भरोसा है तो फिर मुल्तवी करनेका मतलब बिलकुल ही त्याग देना क्यों लगाया जाये?

आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

९३. पत्र : फूलचन्द शाहको

भाद्रपद सुदी १५, १८८० [१३ सितम्बर, १९२४]

भाईश्री५ फूलचन्द,[२]

तुम्हारा पत्र मिला। तुमने नाम प्रकाशित करनेका जो सुझाव दिया है, उसपर मैं अगले महीने से अवश्य अमल करूँगा। श्याम बाबू, राजगोपालाचारी आदि अन्य अपरिवर्तनवादियोंका सूत तो मिला है, किन्तु किसी भी प्रमुख स्वराज्यवादीका सूत नहीं मिला। मैं शिवलालभाईकी जमीनके बारेमें देखूँगा। काठियावाड़ के नाम मुझे

  1. देखिए "वास्तविकताएँ," ११-९-१९२४।
  2. फूलचन्द कस्तूरचन्द शाह, सौराष्ट्रके एक राजनीतिक और रचनात्मक कार्यकर्त्ता।