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टिप्पणियाँ

अधिक नहीं कहा जा सकता। उसमें मढडा आश्रमके २२, भावनगरके १७, राजकोटके १५ और अमरेलीके ५ नाम हैं। शायद इन आँकड़ोंमें भी सुधारकी गुंजाइश हो, लेकिन अब इसी सूचीमें और ज्यादा स्थानोंके जुड़नेकी सम्भावना नहीं है। काठियावाड़के पास ऐसे साधन हैं कि यदि वह चाहे तो कातनेमें पहला स्थान प्राप्त कर सकता है। इसके बावजूद इतना कम सूत मिला है, इससे पता चलता है कि अन्य प्रान्तोंकी भाँति काठियावाड़ में भी व्यवस्थाका अभाव है। धर्मार्थ कातनेवाले अधिक लोग नहीं मिल सकते, मैं यह बात नहीं मानता। जिन्होंने सूत भेजा है यदि वे लोग अधिक उद्योग करें तो कातनेवालोंकी संख्यामें बहुत वृद्धि हो सकती है।

प्रचार कैसे करें?

यदि हम स्वेच्छासे सूत कातनेकी प्रवृत्तिको व्यापक करना चाहते हैं तो उसके लिए हमें कार्य कुशलता और लगनकी आवश्यकता पड़ेगी। सूरतके एक धनिक परिवार के एक नवयुवक भाई रतनलाल खांडवालाने लोकमान्य तिलककी जयन्ती के अवसरपर एक मण्डलकी स्थापना की है। उसे स्थापित हुए अभी एक मास ही हुआ है। इसका कार्य चरखे, पूनियाँ तथा चरखेसे सम्बन्धित अन्य सामान मुहैया करना और चरखोंकी मरम्मत करना आदि है। यह मण्डल सूत कातनेवालोंके सूतको बुन भी देता है। जो लोग प्रति मास कमसे कम तीन हजार गज सूत कातें वे इस मण्डलके सदस्य बन सकते हैं। एक महीने में इसके २७ सदस्य बने हैं और इन्होंने २,२७,५०० गज सूत काता है। उसके दो सदस्य बुनाईका काम भी जानते हैं और कपड़ा बुनते हैं। यदि ऐसे मण्डलोंकी स्थापना स्थान-स्थानपर की जाये तो थोड़े ही समयमें कताईका प्रचार घर-घर हो जाये। पूनियोंकी कमी सब जगह देखने में आती है। छोटी धुनकी से थोड़ी-सी रुई धुन लेना कोई मुश्किल काम नहीं है। यदि स्वेच्छासे कातनेवाले सावधानी रखें और अच्छी रुई चुनें तो वे भी अच्छा महीन सूत कात सकते हैं। यह बात याद रखनी चाहिए कि एक सीमातक अर्थात् ३० अंकतक महीन सूतके लिए कम रुईकी जरूरत होती है। और कम रुईका मतलब हुआ कम खर्च और कम धुनाई। इस तरह ३० अंकतक का महीन सूत कातनेमें तिहरा लाभ है---कम रुई, कम मेहनत और कम वक्त। ऐसा समझना चाहिए कि जिस तरह कम रुई लगने से पैसा बचता है उसी तरह कम धुनाई होनेसे भी कम पैसा खर्च होता है।

बुनाईके कामसे कमाई

काठियावाड़के एक भाईने, जिन्होंने स्वेच्छा और देश-प्रेमसे प्रेरित होकर बुनकरका धन्धा अपनाया है, अपनी कमाईके आँकड़े भेजे थे। वे बहुत सावधानीसे काम कर रहे हैं। अब पहलेके आँकड़ोंमें सुधार होनेपर वे लिखते हैं।[१]

नौसिखियोंको मुसीबतें तो झेलनी ही पड़ती हैं। लेकिन अनुभवसे सुधार करते रहनेपर ज्यादा मेहनत किये बिना भी आयमें वृद्धि की जा सकती है, इस बारे में

  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें पत्र-लेखकने लिखा था कि यदि अच्छी किस्मका सूत मिले तो आयमें कमसे कम डेढ़ गुनी वृद्धि हो जाती है।