१०१. पत्र: आनन्दानन्दको
रविवार [१४ सितम्बर, १९२४ या उसके पश्चात्][१]
शाह नामके एक सज्जनने 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' के चन्देकी टीका करते हुए पत्र लिखा था। यह पत्र मैंने तुम्हारे उत्तरके लिए भेजा था। उत्तर मुझे अभीतक नहीं मिला है। अब भेज देना।
मैं आज ८ नहीं, बल्कि ९ गैलियाँ भेज रहा हूँ। तुम पूरी तेजीसे छाप रहे हो; परन्तु लिखित सामग्री के समाप्त होनेपर तो मैं तुम्हें बहुत कम सामग्री भेज पाऊँगा। लगता है कि मुझे आश्रममें आनेके बाद ही [लिखनेका] अवकाश मिल पायेगा। मैं प्रूफ संशोधित करके तो तुम्हें भेज दूँगा; लेकिन बादमें में बहुत कम सामग्री दे सकूँगा, इस बातका ध्यान रखना।
मैंने मुहम्मद अलीसे टाइप और अन्य बातोंके बारेमें बातचीत की है। उनका कहना है कि अभी तो जैसा चलता है वैसा ही चलने दिया जाये। मेरा ख्याल है, हमें इस सम्बन्ध में और कुछ नहीं कहना चाहिए।
व्यावसायिक पत्र-व्यवहार तो अच्छी तरह सँभाल कर रखते ही होगे। यदि तुम्हें मुश्किल महसूस हो रही हो तो बताना।
मुझे लगता है कि हमारा व्यावसायिक व्यवहार अब और भी बढ़ेगा। अवन्तिकाबाईका कहना है कि वे 'यंग इंडिया' के लेख और अनुवाद जब [बॉम्बे-] क्रॉनिकल' और 'नवाकाल' में पढ़ लेती हैं, 'यंग इंडिया' उन्हें उसके बाद मिलता है। ऐसा क्यों?
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (जी०एन० ७७५५) की फोटो-नकलसे।
- ↑ पत्रमें मुहम्मद अलोसे टाइप और अन्य चीजोंके बारेमें बातचीत करनेकी जो चर्चा है उससे अनुमान होता है कि यह पत्र १९२४ में दिल्लीसे लिखा गया होगा। देखिए "पत्र: आनन्दानन्दको", ८-९-१९२४।