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१०२. तार: अब्दुल बारीको

[१४ सितम्बर, १९२४ के पश्चात्][१]

मौलाना अब्दुल बारी
फिरंगी महल
लखनऊ

लखनऊ आनेके बारे में हकीमजी से सलाह की। हम इस नतीजेपर पहुँचे हैं कि मेरे लिए इस समय दिल्ली छोड़ना मुनासिब नहीं। इसलिए सोचता हूँ दोनों पक्षोंके प्रतिनिधियोंको यहाँ आ जाना चाहिए।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस०एन० १०४९२) की माइक्रोफिल्मसे।

१०३. टिप्पणी

[१५ सितम्बर, १९२४]

आधी रातका कतैया

मौलाना मुहम्मद अलीको अपनी प्रतिज्ञाका और अपनी जिम्मेदारीका कितना खयाल है, इसका अनुभव मुझे दिल्ली पहुँचते ही हुआ। १४ तारीखतक उनका २,००० गज सूत पूरा नहीं हुआ था। उसमें कोई ५०० गज सूत कातना बाकी था। इसलिए वे अपने दूसरे कामोंको खतम करके आधी राततक सूत कातते रहे। यह भी सुना कि वे इस तरह रातमें अकसर कातते हैं। आज १५ तारीख है और उन्होंने निश्चय किया है कि वे आज २,००० गज सूत पूरा कर देंगे। यह टिप्पणी लिखते समयतक कुछ गज सूत कातना ही बाकी रह गया है। शामतक पूरा कर सकेंगे या नहीं, यह सवाल नहीं। परन्तु ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि उन्हें अपना काम पूरा करनेकी चिन्ता कितनी है। मौलाना साहबको अनुभवसे मालूम होगा कि यदि वे अपने कामोंमें अधिक व्यवस्था रखेंगे तो वे अवश्य बिना दिक्कत सूत कात सकेंगे। कातनेके आग्रहमें से ही व्यवस्था उत्पन्न होगी। मनुष्य अपने सोचे हरएक काममें ज्यों-ज्यों अधिक व्यवस्था रखता है, त्यों-त्यों उसे अनुभव होता है कि वह पहले से ज्यादा काम करता है और बहुत बार तो उसका समय बच रहता है। व्यवस्थित आदमी दूना काम करते हुए भी दूसरे काम लेनेके लिए तैयार रह सकता

  1. गांधीजीके दिल्ली में ठहरनेके उल्लेखसे। गांधीजी १४ सितम्बर, १९२४ को दिल्ली पहुँचे थे।