है। अव्यवस्थित आदमीका काम कभी पूरा नहीं होता। मुझे निश्चय है कि कातनेकी नियमित क्रियासे हर कतैया व्यवस्थित बनेगा और उसका समय बचेगा।
नवजीवन, २१-९-१९२४
१०४. पत्र: जवाहरलाल नेहरूको[१]
१५ सितम्बर, १९२४
दिलको छू लेनेवाला तुम्हारा निजी पत्र मिला। मैं चाहता हूँ कि इन सब चीजोंको तुम बहादुरी के साथ झेल लोगे। अभी तो पिताजी चिढ़े हुए हैं और मैं बिलकुल नहीं चाहता कि तुम या मैं उनकी झुंझलाहट बढ़नेका जराभी मौका दें। सम्भव हो तो उनसे जी खोलकर बातें कर लो और ऐसा कोई काम न करो, जिससे वे नाराज हों। उन्हें दुखी देखकर मुझे दुःख होता है। उनकी चिढ़ जानेकी प्रवृत्तिसे साफ जाहिर है कि वे दुःखी हैं। हसरत आज यहाँ आये थे। उनसे पता चला कि मेरे इस प्रस्तावसे भी उन्हें परेशानी होती है कि हर कांग्रेसीको कताई करनी चाहिए। सचमुच मेरा मन होता है कि कांग्रेससे हट जाऊँ और तीनों काम चुपचाप करने लगूँ। उनमें जितने भी सच्चे स्त्री-पुरुष हमें मिल सकते हैं, उन सबके खपनेकी गुंजाइश है। लेकिन इससे भी लोगोंको परेशानी होती है। पूनाके स्वराज्यवादियोंसे मेरी बातचीत काफी देरतक हुई। वे कातनेको भी राजी नहीं हैं और मेरे कांग्रेस छोड़ देने से भी सहमत नहीं हैं। उनकी समझमें यह नहीं आता कि ज्यों-ही मैं, 'मैं' नहीं रहूँगा मेरा कोई उपयोग नहीं रह जायेगा। यह स्थिति बड़ी बुरी है, मगर मैं निराश नहीं हूँ। मेरा ईश्वरपर विश्वास है। मैं तो इतना ही जानता हूँ कि इस घड़ी मेरा क्या धर्म है। इससे आगेकी बात मुझे मालूम नहीं। फिर मैं क्यों चिन्ता करूँ।
क्या तुम्हारे लिए कुछ रुपयेका बन्दोबस्त करूँ? तुम कुछ कमाईका काम हाथमें क्यों न ले लो? आखिर तो तुम्हें अपने ही पसीनेकी कमाईपर गुजर करनी चाहिए, भले ही तुम पिताजी के घरमें रहो। कुछ समाचारपत्रोंके संवाददाता बनोगे या अध्यापकी करोगे?
हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी
ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स
- ↑ जवाहरलाल नेहरूने इसके सम्बन्धमें लिखा था: "मैंने गांधीजीको यह लिखा था कि खर्चेकी दृष्टिसे पिताजीके ऊपर भार बनना मुझे ठीक नहीं लग रहा है और मैं अपने पैरोंपर खड़ा होना चाहता हूँ। मुश्किल यह थी कि मैं कांग्रेसका पूरे समय काम करनेवाला कार्यकर्त्ता था। मेरे पिताजीने जब यह सुना तो बड़े नाराज हुए।"