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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संयोजकोंमें से चार तो वहींके ब्राह्मण थे और शेष तीन नय्यर। इनमें से कोई भी कांग्रेसका अनुयायी नहीं था।

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हम आपको सूचित कर देना चाहते हैं कि वाइकोम-सत्याग्रहके सम्बन्धमें त्रावणकोरमें आम तौरपर शुद्ध अहिंसाकी भावना व्याप्त है।

पत्र में 'यंग इंडिया' में उल्लिखित आरोपका पूरा और साँगोपाँग खण्डन किया गया है। लेकिन, चूँकि इस सभाका आयोजन स्पष्टतः कांग्रेसियोंने नहीं किया था और जनसाधारणको इस खण्डनकी तफसीलोंमें कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती, इसलिए बातको संक्षेप में कहने के लिए मैंने पत्रका अधिकांश छोड़ दिया है।

किसीके जरिये नहीं

एक सज्जनने लिखा है कि उनकी माँ कताईमें बहुत कुशल हैं और वे हर रोज लगभग २० तोला सूत कात लेती हैं। कताईके सम्बन्धमें प्रस्ताव पास होनेपर उन्होंने अपनी माँसे कताई सिखानेको कहा। बेचारी माँसे कुछ कहते नहीं बना। उनका खयाल था कि उनका सूत कातना ही उनके परिवार-भरके लिए पर्याप्त है, विशेषकर इस कारण कि एक व्यक्तिसे एक महीने में जितना सूत कातनेकी अपेक्षा रखी जाती है उससे दुगुना तो वे हररोज कात लेती हैं। यदि इस प्रस्ताव में सिर्फ मात्राको ही उद्देश्य रखा गया होता तब तो उनकी दलीलका कोई जवाब नहीं था; लेकिन कुछ ऐसे कर्त्तव्य हैं जो अपनी एवजमें किसी दूसरेसे नहीं कराये जा सकते। हमारे बदले में कोई दूसरा नहा ले या पढ़ ले या प्रार्थना कर ले---ऐसा तो नहीं हो सकता। इसी तरह यह भी नहीं हो सकता है कि हमारे बदले कोई दूसरा व्यक्ति सूत काते; क्योंकि यहाँ उद्देश्य तो यह है कि हरएक व्यक्ति खुद कताई करके गरीबोंके साथ अपना तादात्म्य स्थापित करे। विचार यह है कि हर आदमी एक व्यक्तिगत उदाहरण प्रस्तुत करे और हमारा मन्तव्य यह है कि इस कलाको इतने लोग सीख लें कि इस सरल प्रणालीसे हम हाथके बने कपड़ेको मिलके बने कपड़े के साथ स्पर्धा करने लायक सस्ता बना दें। उस नेक माताने अपने पुत्रके सूत कातनेपर जो आपत्ति की उसके पीछे निःसन्देह यही भाव रहा होगा कि कताई तो स्त्रियोंका काम है। यह सही है कि आम तौरपर स्त्रियाँ ही यह काम करती हैं। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि कुछ ऐसे हलके-फुलके काम हैं, जिनके लिए स्त्रियाँ पुरुषोंकी अपेक्षा अधिक उपयुक्त हैं। लेकिन, इसी कारण यह कहना कि ये काम पुरुषोंकी शानके खिलाफ हैं या ये पुरुषोंको स्त्रैण बना देते हैं, घोर अन्धविश्वासका द्योतक है। खाना पकाना मुख्यतः स्त्रियोंका काम है, लेकिन हर सिपाही के लिए न केवल खाना पकाना जानना जरूरी है, बल्कि जब वह ड्यूटीपर रहता है, उस समय उसे सचमुच अपना खाना आप ही पकाना पड़ता है। आज दुनियामें जो अच्छे-अच्छे पाक-कलाकुशल लोग हैं। वे पुरुष ही हैं। स्त्रियाँ आदत अथवा स्वभावसे घरकी रानी होती हैं। उन्हें ऐसा नहीं बनाया गया है कि वे कोई बड़े पैमानेपर संगठनकी अपेक्षा रखनेवाला काम करें।