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जेलके अनुभव—११ [चालू]

बिना, सिखोंकी मौजूदा लड़ाईका रहस्य समझना असम्भव है। कनिंघमकी पुस्तक सिख-युद्धोंके मूल-कारणोंका सहानुभूतिपूर्वक लिखा गया इतिहास है। मेकॉलिफके इतिहास में सिख-गुरुओंके जीवन चरित्र हैं। इसमें उनकी रचनाओंसे विस्तृत उद्धरण दिये गये हैं। यह पुस्तक बड़े सुन्दर ढंगसे छपी हुई है। परन्तु अंग्रेजी शासनकी बेहद तारीफ और सिख-धर्मको हिन्दू-धर्मसे सर्वथा भिन्न बतानेके आग्रहके कारण इस पुस्तकका महत्त्व घट जाता है। गोकुलचन्द नारंगकी पुस्तक एक ऐसा प्रबन्ध है जिसमें ऐसी बहुत सी जानकारी है, जो ऊपरकी दोनों पुस्तकोंमें नहीं मिलती। जेलके अपने अध्ययनका ब्यौरा पूरा करने से पहले मैं विद्यार्थी-पाठकोंको नियमित रूपसे कार्य करनेकी उपयोगिता तथा शुष्क विषयोंको रुचिकर बनाने के ढंगके बारेमें दो शब्द कहना चाहूँगा। मेरा कुछ ऐसा इरादा था कि अपने ही अध्ययनके उपयोगके लिए 'गीता' की एक शब्दानुक्रमणिका तैयार कर लूँ। शब्द और उनके सन्दर्भ लिखने और उनके दो-दो बार अनुक्रम तैयार करनेका काम बहुत रुचिकर नहीं होता। इसलिए मैंने सोचा कि अपने कारावास के दौरान ही यह काम कर डालूँ। फिर भी इस कामके लिए बहुत समय देना मुझे पसन्द नहीं था। मेरे कार्यक्रममें इसके लिए कोई समय नहीं था। इसलिए मैंने रोज केवल २० मिनट इस कामके लिए देनेका निश्चय किया। जब इस कामको इतने थोड़े समयतक करने लगा तो पहले जो मुझे यह अखरता था, वह स्थिति समाप्त हो गई। उलटे रोज मैं प्रतीक्षा करता रहता था कि उस कामका समय कब आता है। जब दुबारा उसकी अनुक्रमणिका बनानेका समय आया तब तो मैं उसमें तल्लीन ही होने लगा। जिन्हें इस बातमें जिज्ञासा हो वे स्वयं ही इसका प्रयोग करके इसका गुर समझ सकते हैं। जिन शब्दोंका अनुक्रम मुझे तैयार करना था, उन्हें पहले तो मैंने उनके आद्याक्षरोंके अनुसार इकट्ठा किया। परन्तु प्रत्येक अक्षरके अन्तर्गत शब्दोंको उनके अक्षरानुक्रमके अनुसार कैसे बिठाया जाये, यह प्रश्न बड़ा पेचीदा हो गया है। मैंने कभी शब्द-कोष तैयार नहीं किया था। इसलिए मुझे स्वयं ही इसका तरीका सोच निकालना था और जब मैंने यह तरीका निकाल लिया तो बड़ा खुश हुआ। यह तरीका इतना सुन्दर था कि वह काम बड़ा रुचिकर बन गया। तरीका बड़ा सुघड़ और अचूक था और इससे काम भी जल्दी निबट जाता था। यह सारा काम पूरा करनेमें मुझे अठारह मास लगे। आज इस शब्दानुक्रमकी मददसे में तुरन्त जान सकता हूँ कि 'गीता' में कोई शब्द कहाँ और कितनी बार प्रयोग किया गया है। शब्दोंके साथ उनके अर्थ भी दिये गये हैं। यदि किसी समय में 'गीता' पर अपने विचार लिख पाया तो मैं यह शब्दानुक्रम और विचार दोनों जनताके सामने रखना चाहता हूँ।[१]

(इसे गांधीजीने उपवासके पहले लिखा था)

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-९-१९२४
  1. यह कोष नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबादकी ओरसे गीता पदार्थ-कोषके नामते गुजराती में प्रकाशित हुआ है। उसमें 'गीता' के प्रत्येक पदका उसके अर्थ-सहित स्थान निर्देश किया गया है।