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११२. पत्र: मुहम्मद अलीको

बुधवार [ १७ सितम्बर, १९२४][१]

प्यारे भाई

मैं जानता हूँ कि मेरे फैसलेसे आपको सबसे ज्यादा दुःख पहुँचेगा। फिर भी मैं नहीं चाहता कि आप इस फैसलेसे पीछे हटने की सम्भावनाके बारेमें मुझसे कोई बात चलायें। यह तो मेरे और ईश्वरके बीचका मामला था। हाँ, इस फैसलेकी अच्छाई-बुराईके बारेमें आप जी भरकर बहस कर सकते हैं। कृपया, इसे लेकर आँसू मत बहायें, वरना आप इसे मेरे लिए बरदाश्तसे बाहरकी चीज बना देंगे। बल्कि आपको खुशी मनानी चाहिए कि ईश्वरने मुझे राह दिखाई है और इसपर चलनेकी शक्ति भी दी है। हमारे बीच जो मतभेद है उसे दूर करनेकी दिशामें मैं जो भी प्रगति करूँगा वह मेरे लिए भोजनसे कहीं ज्यादा पोषक होगी।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २३-९-१९२४

११३. मौन-दिवसकी टीप

बुधवार [ १७ सितम्बर, १९२४ ]

...घर[२]पहुँचनेपर मैंने[३]महात्माजीपर हकीम साहब, डा० अन्सारी, शौकत तथा मुझ जैसे कई साथियोंके साथ बेवफाई करनेका इल्जाम लगाना शुरू किया और जी भरकर अपने मनकी भड़ास निकाली। महात्माजीका मौन व्रत खत्म नहीं हुआ था। इसलिए उन्होंने सिर्फ मुस्कराते हुए एक पर्चीपर इतना लिख दिया:

आपने जो कुछ कहा, आपको यह सब, बल्कि इससे ज्यादा भी कहनेका हक है। पहले आपका दिमाग ठण्डा हो जाये, फिर मैं आपसे रात भर बातें करूँगा। बस इतना याद रखिए कि कुछ ऐसी बातें हैं जिनमें खुदा और बन्देके बीच कोई तीसरा नहीं होता।

उससे कुछ ही देर पहले उनके एक साथीने मुझे एक पर्ची[४]दी थी, जो उन्होंने अपने हाथसे लिखी थी और जिसपर उर्दूमें उनके दस्तखत थे।...

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २३-९-१९२४
  1. अपने हाथसे लिखे इस पत्रपर गांधीजीने उर्दूमें हस्ताक्षर किये थे। देखिए अगला शीर्षक।
  2. मुहम्मद अलीके घर।
  3. मुहम्मद अली।
  4. देखिए पिछला शीर्षक।