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११५. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

दिल्ली
१७ सितम्बर, १९२४

प्रिय मोतीलालजी,

आपका तार मिला। कमसे कम अभी कुछ दिन तो दिल्ली में हूँ ही। इसलिए जब भी आप और श्री दास दिल्ली आयें, मुझे आपसे मिलकर प्रसन्नता होगी। अब तो मैंने गोता लगा दिया है, जो आखिरी भी साबित हो सकता है। मेरा २१ दिनका उपवास आजसे प्रारम्भ है। मैंने धर्मको इसी रूपमें समझना सीखा है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

११६. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

भाद्रपद बदी ४ [ १७ सितम्बर, १९२४ ][१]

कामके बारेमें तुम्हें महादेव लिखेगा। तुम्हें मेरे उपवाससे दुःखी होनेकी बजाय प्रसन्न होना चाहिए। यदि कोई मनुष्य कष्ट उठाकर भी धर्मका पालन करता है तो उससे उसके स्नेही जनोंको प्रसन्नता ही होनी चाहिए। यहाँ दौड़ आनेकी तुम्हें जरूरत नहीं है। अभी तो सब आयेंगे। हाँ, अन्तिम सप्ताहमें जरूर आ जाना, यदि उस समय तारामतीकी तबीयत अच्छी हो तो।

[ गुजरातीसे ]
बापुनी प्रसादी
  1. मथुरादास त्रिक्रमजीकी दी हुई तिथि।