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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी साधक पूर्वजने ईश्वरकी प्रत्यक्ष प्रेरणापर ही की होगी। इस स्थूल जगत् में प्राणस्य प्राणम् के लिए तपस्यारत पार्वतीके माध्यम से सर्वशक्तिमान के कार्य-कलापको शक्तिका उसके सुन्दरतम रूपमें उद्घाटन किया गया है। यह ऐसा पाठ है जिसे हृदयंगमकर मानव समाजको अपने जीवन में उतारना चाहिए। आपने इस पाठको अपने जीवनमें उतारा है और अली-बन्धुओं तथा दूसरोंके साथ हृदयकी एकता प्राप्त करके इसे राजनीतिक क्षेत्रमें लागू किया है। परिणाम यह है कि आज हम विभिन्न जातियों और धर्मोंके अलग-अलग तत्त्वों से एक सामाजिक भारतीय राष्ट्रकी रचना करनेके मार्गपर भली-भाँति आरूढ़ हैं। ईश्वर करे, यह देश आपके संकेतको समझे और हृदयकी एकता प्राप्त करनेके लिए कर्म-रूप तपस्यापर दृढ़ रहे।

मैं इस पत्रको इसलिए नहीं छाप रहा हूँ कि इसमें मेरी प्रशंसा है। इसे मैं उस हृदयकी एकता के लिए छाप रहा हूँ, जिसपर पत्र-लेखकका आग्रह है और जिसे वे मेरे तथा अली-बन्धुओं और उन दूसरे लोगोंके बीच वास्तवमें लक्षित करते हैं जिनका धर्म ही नहीं बल्कि विचार-पद्धति भी मुझसे भिन्न है। पिछले हफ्ते बड़े भाईने मुझेसे पूछा: "हालांकि हम लोग अधिकांश बातों में एक-दूसरेसे इतने असमान हैं, फिर भी वह क्या चीज है जो हमें परस्पर अविच्छेद्य रूपसे बाँधे हुए हैं? क्या यह आखिरकार एक ही ईश्वरके प्रति निष्ठा और भयकी भावना नहीं है?" कहा वह बहुत स्वाभाविक और सच था। चूँकि हम ईश्वरको भिन्न-भिन्न माध्यमोंसे---'कुरान', 'बाइबल', 'तालमुद', 'अवेस्ता' या 'गीता' के माध्यम से---देखते हैं, इसी कारण हम आपस में लड़कर उसकी निन्दा करनेके भागी क्यों बनें? जो सूरज पर्वतोंपर प्रकाश फेंकता है वही मैदानोंपर भी चमकता है। सूर्यका ताप दोनों जगहोंपर अलग-अलग होता है, क्या इसीलिए मैदानी लोगोंको हिम-प्रदेशमें रहनेवालोंसे झगड़ना चाहिए? हमें धर्मग्रन्थों और सूत्रोंका उपयोग अपनेको दास बनानेवाली जंजीरोंके रूपमें करनेके बजाय अपनी मुक्ति और हृदयकी एकता प्राप्त करनेके साधनों के रूप में क्यों नहीं करना चाहिए?

वाइकोम सत्याग्रह

वाइकोम सत्याग्रहका अर्थ जितना समझा जाता है, उससे शायद ज्यादा गहरा है। उसे संगठित करनेवाले नौजवान अनुशासनमें कठोर और कट्टरपन्थी वर्गके प्रति अपने व्यवहारमें शिष्ट हैं। लेकिन यह तो उनकी परीक्षाका एक मामूली-सा हिस्सा है। उनमें से तो कुछ सामाजिक बहिष्कारका उत्पीड़न भी सह रहे हैं। हम पश्चिमी प्रेसीडेन्सीके लोगोंको कल्पना भी नहीं हो सकती कि इस उत्पीड़नका क्या अर्थ हो सकता है। इस आन्दोलन में भाग लेनेवाले इन नौजवानोंको न केवल सामाजिक सुविधाओंसे वंचित रखा जा रहा है बल्कि उनके सामने पारिवारिक सम्पत्तिमें अपने हिस्सेसे वंचित होने का खतरा भी है। यदि वे कानूनकी शरण लें तो शायद उन्हें अपना हक मिल जाये। लेकिन एक सत्याग्रही वैयक्तिक अन्यायके निवारण के लिए कानूनकी