पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/२०९

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टिप्पणियाँ

शरण नहीं ले सकता। वह तो यह मानकर चलता है कि उसे उत्पीड़न सहना है। वाइकोम सत्याग्रह द्वारा जैसा सुधार कराने की कोशिश हो रही है, उसमें सत्याग्रहीका प्रयास यह होता है कि वह अपने चरित्र -बल और कष्ट-सहनके जरिए अपने विरोधीका हृदय परिवर्तन कर दे। वह जितना ही अधिक शुद्ध होगा और जितना ज्यादा कष्ट-सहन करेगा, उतनी ही तेजीसे वह अपने उद्देश्यकी ओर प्रगति करेगा। इसलिए उसके लिए जरूरी है कि वह सामाजिक बहिष्कार, पारिवारिक सुविधाओंका विवर्जित और पारिवारिक सम्पत्तिमें अपने हिस्से से वंचित किया जाना बरदाश्त करे। उसे न केवल ये कठिनाइयाँ खुशी-खुशी बरदाश्त करनी चाहिए, बल्कि उसे चाहिए कि वह अपने उत्पीड़कोंके प्रति सक्रिय प्रेम-भाव रखे। उत्पीड़क लोग ईमानदारीसे ऐसा मानते हैं कि सुधारक लोग कोई पापपूर्ण काम कर रहे हैं और इसलिए सुधारकोंको उस कल्पित गलत मार्गसे विरत करनेके लिए जो एकमात्र तरीका उन्हें कारगर लगता है, उसका वे इस्तेमाल करते हैं। दूसरी ओर, सत्याग्रही दूसरोंको दण्डित करनेकी पद्धतिसे अपना सुधार लागू नहीं करना चाहता, बल्कि इसके लिए वह तपस्या, आत्म-शुद्धि और कष्ट सहनका सहारा लेता है। अतः उत्पीड़नके प्रति किसी प्रकारका रोष, उसने अपनेको स्वेच्छासे जिस अनुशासनके बन्धनसे बाँध लिया है, उसमें बाधक होगा। यह रास्ता लम्बा हो सकता है, ऐसा लगता है कि यह कभी खतम ही नहीं होगा; ऐसा लगता है कि यदि तनिक शक्ति-प्रदर्शन अथवा नैतिक रूपसे समझाने-बुझाने या दबाव डालने के तरीकेसे ही काम लिया जाये तो बात ज्यादा आसानी से बन सकती है। लेकिन मैं यहाँ जो दिखानेकी कोशिश कर रहा हूँ वह यह नहीं है कि सत्याग्रह ज्यादा कारगर चीज है, बल्कि यह कि सत्याग्रही द्वारा समझ-बूझकर चुने गये तरीकोंका अमली मतलब क्या होता है। वैसे तो मैंने इन पृष्ठोंमें अकसर यह दिखाया है कि अगर हम अन्तिम परिणामकी दृष्टिसे देखें तो सबसे जल्दी सफलता दिलानेवाला साधन भी सत्याग्रह ही है। लेकिन यहाँ मेरा मंशा सिर्फ यह दिखानेका है कि वाइकोमके युवा सत्याग्रही क्या कर रहे हैं। धरनोंके रूपमें वे क्या कर रहे हैं, उसके बारेमें जनताको बहुत-कुछ मालूम है, लेकिन उनमें से कुछ लोग अपने परिवार और जातिवालोंके हाथों चुपचाप जो यातना सहन कर रहे हैं, उसका उसे कोई ज्ञान नहीं है। लेकिन मैं जानता हूँ कि मौन रहकर और प्रेम-भावसे किया जानेवाला यह कष्ट-सहन ही अन्ततः पूर्वग्रहकी दीवारोंको तोड़ेगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सुधारक लोग अपनी जिम्मेवारीको पूरी तरह समझें और स्वेच्छासे स्वीकार किये गये अनुशासनके नियमोंको रंचमात्र भी भंग न करें।

दक्षिण भारतके लिए सहायता

श्री जॉर्ज जोजेफने जेलसे निकलते ही अपने एक मित्रको त्रावणकोरकी संकटापन्न स्थितिका निम्नलिखित विवरण[१]लिख भेजा:

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें बाढ़ की विभीषिकाका वर्णन करते हुए सहायताके उपार्थोके रूपमें कताई करने और रुई मुहैया करनेका सुझाव दिया गया था।