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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बाढ़ के तुरन्त बाद ही एक अन्य मित्रने जो-कुछ लिखा, वह भी काफी सच है। उन्होंने लिखा कि किसी विप्लवसे जितनी हानि महीनोंमें हो सकती है, वह निष्ठुर दिखनेवाली प्रकृतिने एक ही दिनमें कर दी। तात्कालिक सहायताका प्रारम्भिक कार्य समाप्त होनेके बाद असली सहायता कार्य आरम्भ होगा। 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' के पाठक मेरी अपीलका बहुत ही उदारतापूर्वक जवाब दे रहे हैं। लेकिन वे विश्वास करें कि कार्यकर्त्ताओंके सामने जो कठिन काम है, उसे देखते हुए यह सहायता बहुत उदार नहीं कही जा सकती। मेरा सुझाव है कि रुईके व्यापारी जब नकद रुपया न भेज सकें तो वे रुई भेजें। जो हजारों लोग एक साल और अपनी भूमिपर खेती नहीं कर सकेंगे, उनके पास चरखेके सिवा दूसरा सहारा नहीं है। अपने देशके इन संकटग्रस्त भाई-बहनोंके लिए रोजगारका प्रबन्ध करनेकी योजनाएँ भेजने के लिए मैं कार्यकर्त्ताओंको कह रहा हूँ। चरखा मेरे लिए कोई अन्धश्रद्धाकी चीज नहीं है और मैं दाताओंको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि मैं हजारों व्यक्तियोंके लिए इसी ढंगका कोई दूसरा काम ढूँढ सका तो मैं उनके दानसे प्राप्त पैसे या चीजोंका उपयोग उस काम के लिए करनेमें तनिक भी आगा-पीछा नहीं करूँगा।

अपने प्रान्तका गर्व

अ० भा० खादी बोर्डके मन्त्रीने बिहारसे प्राप्त यह सर्वथा उचित शिकायत स्पष्टीकरण और सुधारके लिए मेरे पास भेजी है:

हमारा ध्यान इसी ४ तारीखके 'यंग इंडिया' में विभिन्न प्रान्तोंके सदस्यों द्वारा भेजे गये सूतके बारेमें महात्मा गांधीकी टिप्पणीकी ओर दिलाया गया है। बिहारके बारेमें महात्माजी कहते हैं कि "किसीने भी ऐसा काम नहीं किया है जिससे वह उनके [ राजेन्द्रप्रसादके ] मुकाबले सही मानेंमें द्वितीय स्थानका भी पात्र हो।" चूँकि इससे हमारे कुछ अच्छे कातनेवाले सदस्य निरुत्साहित हो सकते हैं, इसलिए मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि आप निम्नलिखित सदस्यों और गैर-सदस्योंके सूतको फिरसे जाँचें। अगर वे काम-चलाऊ तौरपर भी अच्छे साबित हों तो कृपया देखें कि उनका कुछ उल्लेख हो जाये।

मैंने पत्र में दिये गये १७ नामोंको छोड़ दिया है। मैं मन्त्री और उक्त १७ सदस्योंके निकट क्षमाप्रार्थी हूँ। तथ्य यह है कि मैंने मूल रिपोर्ट, जो गुजरातीमें थी और जो पूरीकी-पूरी 'नवजीवन' में छपी है, संक्षिप्त अनुवादके लिए एक सहायकको दी थी और उस अनुवादको बिना मूलसे मिलाये ही छाप दिया। मूल रिपोर्ट में बिहारके साथ कोई अन्याय नहीं हुआ है। बिहारसे सम्बन्धित मूल अंशका अनुवाद यह है।

लगभग सब सूत सामान्य दर्जेका है। बहुत-सा सूत तो अत्यन्य अव्यवस्थित ढंगसे कता हुआ है। रुई अच्छी नहीं है। उसपर छिड़काव नहीं किया गया है। बाबू राजेन्द्रप्रसादने १०,१४८ गज सूत भेजा है। सूत ८ अंकके आस-पासका है और ठीक ढंगसे कता हुआ और अच्छी तरह लच्छियों में बाँधा हुआ है। इस प्रान्तसे ऐसा अच्छा सूत और किसीने नहीं भेजा है।