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सबसे बड़ा प्रश्न

'यंग इंडिया' की जिस टिप्पणीका उल्लेख किया गया है, उसमें बिहार के साथ हुए अन्यायके लिए मुझे दुःख है। सूतकी जाँच करनेवालेने जो नुक्स बताये हैं, आशा है दूसरे महीनेकी किस्तमें उन्हें दूर कर दिया जायेगा। मेरे लिए यह खुशकिस्मती होगी। जाँच करनेवालेने मेरा ध्यान सिन्धसे सम्बन्धित अंशके अनुवादकी ओर भी दिलाया है और कहा है कि अगर सिन्ध भी शिकायत करे तो उचित ही होगा। इसलिए मैं सिन्धसे सम्बन्धित अंशका भी पूरा अनुवाद नीचे दे रहा हूँ:

"दो या तीन बण्डलोंको छोड़कर, शेषमें अच्छी कताई देखनेमें नहीं आती। कुछ बण्डलोंमें तो गुंडियोंकी लम्बाई भी अलग-अलग है। छिड़काव करनेका तो कोई उदाहरण ही नहीं मिला। कुछने तो गुंड़ियाँ बनाये बिना ही सूत भेज दिया है।" हालाँकि सिन्धको इसपर एतराज हो सकता है, लेकिन मैं अनुवादकको निम्नलिखित संक्षिप्तीकरणके लिए क्षमा कर दूँगा।" स्थिति बहुत खेदजनक है। सधी हुई कताईका कोई उदाहरण नहीं मिलता।" निपुण सिन्धियो, सावधान!

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-९-१९२४

१२१. सबसे बड़ा प्रश्न

दिल्ली जाते हुए रास्तेमें अपनी डाक देखते हुए नीचे लिखा पत्र मुझे मिला। दो-तीन व्याकरण-दोषोंको सुधारकर उसे प्रायः शब्दशः यहाँ देता हूँ:

नागपुरके मुसलमान पगला गये हैं। मैं यद्यपि हिन्दू हूँ फिर भी मैंने नागपुरमें हिन्दुओंकी तरफसे की गई हलचलसे अपनेको सावधानीके साथ दूर रखा है। मेरा अहिंसा और हिन्दू-मुसलमान एकता, दोनोंमें विश्वास है। आप विश्वास रखें कि मेरे मनमें साम्प्रदायिक भावना नहीं है। लेकिन नागपुर और दूसरी जगहों में की गई मुसलमानोंकी करतूतोंको देखकर तो मेरे इस विश्वासकी बड़ी कठोर परीक्षा हो रही है। सबसे अधिक दुःखकी बात तो यह है कि एक भी जिम्मेवार मुसलमानने सार्वजनिक रूपसे इन कार्योंकी निन्दा नहीं की है। यदि वीर डाक्टर मुंजे और वीर उदेराम तथा कोष्ठी[१] लोग न होते तो न मालूम इन मुसलमानोंने क्या-क्या अत्याचार किये होते। मैं यह जानता हूँ कि प्रेममें सौदा नहीं होता। इस बातको भी मानता हूँ कि प्रेममें देना ही देना होता है। लेकिन मैं इस बातको नहीं भूल सकता कि प्रेमके लिए जो आहुति दी जाये, जो दुःख सहन करना पड़े, वह सब स्वेच्छासे होना चाहिए। इसमें जबरदस्ती नहीं हो सकती। लेकिन हिन्दू शक्तिशाली होनेकी वजहसे या अपनी इच्छासे नहीं झुकता, बल्कि अपनी कमजोरीकी वजहसे और

२५-१२
 
  1. बुनकरोंकी एक जाति।