पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/२१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८१
सबसे बड़ा प्रश्न

जब उन्होंने असैनिक सत्ताकी प्रधानता के लिए आवाज उठाई थी, उस समय उनका कहना बहुत ठीक था और उन्होंने बड़ी वीरताका परिचय दिया था। जब रोमपर सैनिक सत्ताका दौर-दौरा हुआ, उसका पतन हो गया। इस खयालसे ही कि हमारे धर्मकी रक्षाका सूत्र गुंडोंके हाथमें हो, मेरी अन्तरात्मा विद्रोह कर उठती है। इसलिए फिलहाल, हिन्दुओंको ही अपनी नजरमें रखकर, मैं बड़े अदब और सच्चे मनसे हर समझदार हिन्दूको चेतावनी देना चाहता हूँ कि वे अपने मंदिरोंकी, अपनी और अपने बीबी-बच्चों की रक्षाके लिए गुंडोंकी सहायताका भरोसा न रखें। अपने कमजोर शरीरको ही लेकर उन्हें खुद अपनी जगहपर खड़े रहकर बिना मारे अथवा मारकर, मर-मिटने का निश्चय करना चाहिए। यदि जमनालालजी और उनके साथी शान्ति-रक्षा करते हुए मर भी जाते तो उनकी मृत्यु बड़ी गौरवपूर्ण होती। डा० मुंजे या मैं यदि अकेले अपने मन्दिरोंकी रक्षा करते हुए मर जायें तो वह हमारे लिए गौरवपूर्ण मृत्यु होगी। सचमें वहीं हमारे हृदयकी निर्भयता और वीरता होगी।

पर इसके अलावा भी ऐसे अनेक काम किये जा सकते हैं जिसमें उससे कम बहादुरी दरकार है। हमें नागपुरके बारेमें सच्चाई खोज निकालनी चाहिए। मैं डा० मुंजेसे इसके लिए लिखा-पढ़ी कर रहा हूँ। मैं दिल्ली के हिन्दू-मुसलमानोंसे अनुनय-विनय कर रहा हूँ कि वे मुझे वहाँके फसादका मूल कारण बतायें। मैंने उन्हें इस सम्बन्धमें पंच-फैसला करानेकी सलाह दी है और कहा है कि वे चाहें तो यह काम मैं अकेले या औरोंके साथ खुद करने को तैयार हूँ। उन्होंने अभीतक मेरी कोशिशोंमें मेरी मदद करनेसे इनकार नहीं किया है। अभीतक वहाँकी दुर्घटनाका कोई प्रामाणिक विवरण नहीं मिला। मैं आपसे बाहर कैसे होऊँ? मुझे इस बातका यकीन नहीं हुआ है कि हर बातमें और हर जगह अकेले मुसलमानोंका कसूर है। मुझे पता नहीं कि आरम्भिक कारण क्या था। पर हाँ, मैं यह जरूर जानता हूँ कि दोनों फरीकोंकी तरफसे सिद्धान्तहीन अखबार सीधे-सादे हिन्दुओं और सीधे-सादे मुसलमानोंके दिलों में जहर फैला रहे हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि खानगी बातचीतमें यह जहर और भी ज्यादा फैलाया जा रहा है और बातें इस तरह बढ़ा-चढ़ाकर कहीं जा रही हैं जिसकी कोई हद नहीं। इस अन्धकार, दुविधा और निराशाके सागरकी तहतक पहुँचनेमें मैं कोई कसर न उठा रखूँगा। इस हिन्दू-मुस्लिम तनावसे राष्ट्र के पूरे स्वच्छ सार्वजनिक जीवनके नष्ट होनेका खतरा पैदा हो गया है। उसके ठीक-ठीक निपटारेके लिए यह अनिवार्य है कि पहले आजतककी घटनाओं और तथ्योंका एक सच्चा विवरण तैयार किया जाये। इस तनाजेका निपटारा करनेकी मेरी आन्तरिक अभिलाषा भी इस बातका एक महत्त्वपूर्ण कारण है, जिसने मुझे स्वराज्यवादियों तथा अन्य सम्बन्धित पक्षोंके सामने पूर्ण आत्म-समर्पण करनेपर मजबूर किया है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-९-१९२४