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१२२. स्पष्टीकरण

दिल्ली-निवासी कुछ मुसलमान भाई मुझसे मिलने आये थे। उन्होंने २१ अगस्तके 'यंग इंडिया' में प्रकाशित मेरे इस कथनपर आश्चर्य प्रकट किया कि हिन्दू मन्दिरोंकी पवित्रता भंग करनेकी कार्रवाईके पीछे मुसलमानोंके एक संगठनका हाथ है, और ऐसा भी नहीं है कि वह कार्रवाई उत्तेजनाका कोई कारण मिलनेपर की गई हो। इन भाइयोंका कहना है कि मैंने जो संगठनकी बात कही, उसका मतलब सम्पूर्ण मुसलमान जातिकी ओरसे खड़ा किया गया संगठन लगाया गया है और उत्तेजनाके कारणकी जो चर्चा की गई है उसका अर्थ किसी भी प्रकारकी उत्तेजनाका कारण समझा गया है। मैंने मुलाकातियों को बताया कि संगठनसे मेरा मतलब सम्पूर्ण मुसलमान जाति द्वारा या उसकी प्रेरणापर खड़ा किया गया संगठन नहीं, बल्कि कुछ खास लोगोंका संगठन है। मगर मेरे पास ऐसे आँकड़े नहीं हैं कि इन लोगोंकी संख्या बता सकूँ।

इन मित्रोंने मुझे बताया--और मेरे दिल्ली पहुँचनेपर हकीम साहब और मौलाना मुहम्मद अलीने भी ऐसा ही बताया कि उन्हें तो ऐसे किसी संगठनकी कोई जानकारी नहीं है और यदि सचमुच इस तरहका संगठन होता तो उन्हें मालूम जरूर होता। इसपर मैंने कहा कि चूँकि आप यह बात स्वीकार नहीं कर रहे हैं, इसलिए अपने कथनकी सत्यतामें कुछ शंका तो मुझे भी होने लगी है, फिर भी मैं अपने मनसे इस खयालको बिलकुल निकाल देनेके लिए तैयार नहीं हूँ कि जैसे संगठनका मैंने जिक्र किया वैसा कोई संगठन सचमुच है। अभी हालमें जो पवित्रताभंगकी घटनाएँ हुई हैं, उनसे पहले ही कई लोगोंने, जिनमें कुछ मुसलमान भी शामिल थे, मुझे बताया कि ऐसा कोई संगठन है। जब ये घटनाएँ घटीं तो मैं स्वभावतः इसी निष्कर्षपर पहुँचा कि ये कोई क्रोधके आवेगमें हठात् की गई कार्रवाइयाँ नहीं हैं; इसके विपरीत इनका जो एक विशेष स्वरूप है वह इस कारण है कि लोगोंने किसी संगठनके उकसानेपर ये कार्रवाइयाँ की। यदि मुझे यह मालूम हो जाये कि मेरा खयाल बिलकुल गलत है तो मुझे खुशी होगी और अपने निर्णयकी भूलकी प्रतीति होते ही मैं तत्काल आवश्यक भूलसुधार कर लूँगा। कहा गया है कि हो सकता है, यह संगठन किसी सरकारी एजेंसीकी ही करतूत हो। मैंने कहा कि इन उपद्रवों में सरकारका जो हिस्सा हो सकता है, उससे मैं भी इनकार नहीं कर सकता। बल्कि अगर मुझे पता चले कि इस सबके पीछे असली हाथ किसी सरकारी एजेंसीका ही है तो निश्चय ही मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।

उत्तेजना के कारणके सम्बन्धमें मैंने मुलाकातियोंको बताया कि 'यंग इंडिया' में प्रकाशित लेखसे[१] यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि मेरा तात्पर्य विशेष ढंगके उत्तेजना के

  1. देखिए " गुलबर्गाका पागलपन, २८-८-१९२४।