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स्पष्टीकरण

कारणसे ही है। लेख में कहा गया है कि हिन्दुओंकी तरफसे मुसलमानोंको उत्तेजनाका मौका ही नहीं दिया गया। मुलतानमें जब मंदिर अपवित्र किये गये तब बिना किसी उत्तेजनाके ही किये गये। हिन्दू-मुस्लिम तनावके विषयमें लिखे अपने लेखमें मैंने कुछ ऐसे स्थानोंकी चर्चा की है, जहाँ हिन्दुओं द्वारा मसजिदोंको अपवित्र किये जानेकी बात कही जाती है। मैं इन आरोपोंके सम्बन्धमें सबूत एकत्र करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। परन्तु अबतक मुझे उनका कुछ भी सबूत नहीं मिला है।

मेरे मुलाकातियोंने मुझे हैदराबादसे प्रकाशित होनेवाली एक पत्रिका दिखाई। कहते हैं, उस पत्रिका के अनुसार हिन्दू लोग इस प्रकारके उत्तेजनात्मक काम करते हैं। मैंने कहा कि वैसे तो किसी भी स्थितिमें मैं अपने दृष्टिकोणसे मन्दिर-मसजिद किसीकी भी पवित्रताको भंग करना समान रूपसे अनुचित मानूँगा और इस पत्रिकाकी बातके सही सिद्ध हो जानेपर भी वैसा ही मानूँगा, फिर भी मैं स्वीकार करता हूँ कि यदि यह बात सिद्ध हो जाये तो इस कार्रवाईकी भर्त्सना करनेका उतना ज्यादा कारण मेरे पास नहीं रह जायेगा। गुलबर्गा में हिन्दुओं द्वारा मसजिदकी पवित्रता भंग करनेकी जो बात कही जाती है, वह अगर सिद्ध की जा सकती हो तो मैं सचमुच बहुत दुखी और लज्जित होऊँगा।

इसपर मुलाकातियोंने पूछा कि क्या हिन्दुओंका भी कोई ऐसा ही संगठन नहीं है। मैंने बताया कि मुझे तो हिन्दुओंके किसी ऐसे संगठनकी कोई जानकारी नहीं है, जो मसजिदोंकी पवित्रता भंग करनेके लिए लोगों को उकसाता हो, लेकिन यह अवश्य देखता हूँ कि कुछ ऐसे हिन्दुओंका-- इनकी संख्या कोई कम नहीं है--एक संगठन है, जो इस्लाम के बारेमें अपमानजनक बातें लिखकर और मुसलमानोंकी शरारतोंको बहुत ही अतिरंजित रूपमें पेश करके उत्तेजना फैलानेपर तुला हुआ है। यह अक्षम्य है। लेकिन मामले में दोनों पक्ष समानरूपसे दोषी हैं। इस हालत में देशके प्रत्येक शुभेच्छुका यह कर्त्तव्य है कि वह ऐसी शरारतोंको बढ़ावा देनेवालोंकी निन्दा करे और इन्हें रोकने के लिए कुछ भी उठा नहीं रखे। मैंने मुलाकातियोंसे कहा कि अगर दोनों समुदायोंके लोग मुझे इजाजत दें और पूरे मनसे सहयोग करें तो मैं इस बात के लिए तैयार हूँ कि जरूरत हुई तो अकेले और सम्भव हुआ तो साथियोंकी सहायतासे मामलेकी जाँच करके इस बातका पता लगाऊँ कि शरारत किसने शुरू की, यह कैसे फैल गई और इसका क्या इलाज है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया,१८-९-१९२४