पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१२३. गांधीजीका खुलासा[१]

१८ सितम्बर, १९२४

श्री गांधीने दिल्ली में अपने २१ दिनके उपवासकी घोषणा करते हुए १८ सितम्बरको निम्नलिखित वक्तव्य जारी किया:

इधर हालकी घटनाएँ मेरे लिए असह्य हो गई हैं। और इसमें मेरी असहायावस्था तो मेरे लिए और भी असह्य हो रही है। मेरा धर्मं मुझे सिखाता है कि जब भी कोई ऐसा संकट उपस्थित हो जिसपर हमारा बस न चले और कष्ट असह्य हो जाये तब उपवास और प्रार्थना करनी चाहिए। अपने घनिष्ठ आत्मीयोंके सम्बन्धमें भी मैंने ऐसा ही किया है। मुझे यह स्पष्ट हो गया है कि मेरे हर तरहके लिखने और कहनेसे भी हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता नहीं हो सकती। इसीलिए मैं आजसे २१ दिनका उपवास प्रारम्भ करता हूँ, जो बुधवार, ८ अक्तूबरको पूरा होगा। अनशनके दिनोंमें सिर्फ पानी और उसके साथ नमक लेनेकी मैंने छूट रखी है। यह अनशन प्रायश्चित्तके रूपमें भी है और प्रार्थना के रूप में भी।

यदि उपवास केवल प्रायश्चित्त-रूप होता तो इसे सर्वसाधारणके सामने प्रकाशित करनेकी आवश्यकता न थी। परन्तु इस बातके प्रकट करनेका सिर्फ एक ही प्रयोजन है। मैं यह आशा करता हूँ कि मेरा यह प्रायश्चित्त हिन्दू और मुसलमानोंके लिए, जो कि आजतक मेल-मिलापसे काम करते आये हैं, आत्मघात न करनेके लिए एक कारगर प्रार्थना सिद्ध हो। मैं तमाम जातियोंके नेताओंसे, अंग्रेजों तकसे, सविनय प्रार्थना करता हूँ कि वे धर्म और मनुष्यता के लिए लांछन-रूप इन झगड़ों को मिटानेके हेतु एक जगह एकत्र होकर विचार करें। आज तो ऐसा जान पड़ता है, मानो हमने ईश्वरको सिंहासनसे उतार दिया है। आइए, हम फिर अपने हृदयरूपी सिंहासनपर उसे अधिष्ठित करें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया,२५-९-१९२४
  1. यह वक्तव्य गांधीजीके निजी सचिवने सुबह दो बजे एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको दिया था।