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१२७. महादेव देसाईके साथ बातचीत[१]

[१८ सितम्बर, १९२४][२]

[गांधीजी:] अच्छा महादेव, चौरीचौरा[३]और बम्बईके काण्डोंको लेकर जो उपवास किये, उन्हें तो तुम समझते हो?

[महादेव देसाई:] हाँ, जरूर।

फिर इस उपवासको क्यों नहीं समझ पाते?

उनमें तो आपने अपना दोष माना था, लेकिन यहाँ तो अपना दोष माननेका कोई कारण ही नहीं है। यहाँ आपने कुछ गुनाह किया है, ऐसा कौन कह सकता है?

हैं! यह कैसी नासमझी है? चौरीचौरा के गुनहगार तो ऐसे लोग थे, जिन्होंने मुझे न कभी देखा था, न वे मुझे जानते थे। यहाँ तो वे लोग गुनहगार हैं जो मुझे जानते हैं, जो मुझपर प्रेम रखनेका दावा करते हैं।

शौकत अली और मुहम्मद अली तो हिन्दू-मुस्लिम झगड़ोंको रोकनेका प्रयत्न कर ही रहे हैं। कुछ लोग इनकी न सुनें तो वे क्या कर सकते हैं और आप भी क्या कर सकते हैं? यह तो समय बीतनेपर ही ठीक होगा।

यह तो तुमने दूसरी बात कही। शौकत अली और मुहम्मद अली तो कुन्दन हैं। वे पूरा प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन यह बाजी अब हमारे हाथमें नहीं है। छ: महीने पहले थी। मैं जानता हूँ कि इस उपवाससे लोगोंके अन्तरमें खलबली मच जायेगी। लेकिन यह तो उसका अप्रत्यक्ष असर होगा। यह उपवास में किसीपर असर डालने के लिए नहीं कर रहा हूँ।

लेकिन आपने अपना कोई गुनाह तो बताया ही नहीं।

गुनाह! कहा जा सकता है कि मैंने, हिन्दू जाति के साथ विश्वासघात किया है । मैंने हिन्दुओंसे मुसलमानोंको गले लगानेको कहा, उनकी पाक जगहोंकी रक्षाके लिए अपना तन, मन, धन अर्पित कर देनेको कहा। आज भी उन्हें अहिंसाकी--मारकर नहीं, बल्कि खुद मरकर झगड़ा शान्त करने की--सीख दे रहा हूँ; और उसका परिणाम

  1. जब गांधीजीने २१ दिनका उपवास रखनेका निश्चय किया तो उनके निकटके कई लोगोंने उनसे अपना निर्णय बदल लेनेके लिए आग्रह किया। इन लोगोंसे उनकी जो बातचीत हुई उससे उपवासके मर्मपर बहुत प्रकाश पड़ा। इन्हीं बातचीतों के आधारपर महादेव देसाईंने यंग इंडियामें"द इनर मीनिंग ऑफ द फास्ट" (उपवासका मर्म) और नवजीवनमें "ले तपश्चर्यानो मर्म" (इस तपश्चर्याका मर्म) शीर्षकसे लेख लिखे। यह बातचीत गुजराती लेखसे ली गई है।
  2. साधन-सूत्रसे।
  3. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४८५-८९ तथा खण्ड २२, पृष्ठ ४३८-४४।