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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या देख रहा हूँ? कितने मन्दिर तोड़े गये! कितनी बहनोंने मेरे आगे फरियाद की है! कल ही मैंने हकीमजीसे कहा कि बहनें मुसलमान गुंडोंके डरसे आतंकित रहती हैं, कई जगहोंमें उनका बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।... भाईका पत्र आया है। उनके बच्चोंपर जो बीती उसे क्या सहा जा सकता है? अब मैं किस मुँह से हिन्दुओंसे कहूँ कि आप सहन करते चले जायें। मैंने तो उन्हें विश्वास दिलाया था कि मुसलमानोंके साथ प्रेम रखनेका फल मीठा ही होगा, परिणामका विचार किये बिना आप उनके साथ प्रेम करें। इस विश्वासको सही सिद्ध करनेकी शक्ति आज मुझमें नहीं रही, न मुहम्मद अली और न शौकत अलीमें ही रही। मेरी बात कौन सुनता है? फिर भी हिन्दुओंसे मुझे मरनेको ही कहना है। ऐसा में मरकर ही कर सकता हूँ, मरकर ही उसकी कुंजी बता सकता हूँ। और किस तरह बताऊँ?

मैंने असहयोग आन्दोलन शुरू किया। आज देखता हूँ कि अहिंसाकी गन्धको भी जाने बिना लोग एक-दूसरेके साथ असहयोग करने लगे हैं। इसका कारण क्या है? इसका कारण सिर्फ यह है कि मैं खुद ही अहिंसक नहीं हूँ। मेरी अहिंसा भी कोई अहिंसा है? अगर वह पराकाष्ठापर पहुँच जाती तो आज मैं जो हिंसा देख रहा हूँ वह देखने को न मिलती। इसलिए मेरा उपवास प्रायश्चित्त है, तपश्चर्या है। मैं किसीको दोष नहीं देता। मैं तो अपनेको ही दोष दे रहा हूँ। मेरी शक्ति चली गई है। हार-थककर, अपनी शक्ति खोकर अब मुझे सिर्फ ईश्वरके ही दरबारमें अर्ज करना है। अब वही सुनेगा, दूसरा कौन सुननेवाला है?

किन्तु प्रायश्चित्तका मतलब क्या यही है--ऐसा उपवास ही है? ऐसे उपवासका विधान हिन्दू धर्ममें है क्या?

वाह! जरूर है! ऋषि-मुनि क्या करते थे? वे जो घोर तपस्या करते थे वह क्या वनमें फल-मूल खाकर करते थे? और हजारों वर्षकी तपस्या करने, गुफाओंमें जाकर तपस्या करने की बात सुनते हैं, सो क्या है? पार्वतीने अपर्णाव्रत लिया था, वह क्या था? तप-जपसे तो हिन्दू धर्म भरा पड़ा है।

जितना गहरा विचार इस उपवासके पीछे रहा है, उतना गहरा विचार पहले के उपवासोंके पीछे शायद ही रहा हो। इस उपवासकी कल्पना तो जिस दिन मैंने असहयोग शुरू किया उसी दिनसे कर रखी थी। असहयोग प्रारम्भ करते समय मनमें ऐसा खयाल आया कि लोगों के हाथमें में जैसा भयंकर शस्त्र दे रहा हूँ, यदि इसका दुरुपयोग हुआ तब? तो प्राणोंकी बलि देनी होगी। आज वह समय आ गया है। आजतकके उपवासोंके उद्देश्य तो सीमित थे। इस बारके उपवासका उद्देश्य विश्वव्यापी है। इसमें प्रेमका पारावार उमड़ रहा है और मैं इस समुद्रमें आज नहा रहा हूँ।

[गुजराती से]
नवजीवन,२८-९-१९२४