पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१३३. शौकत अलीसे बातचीत[१]

[१९ सितम्बर, १९२४][२]

मौलाना शौकत अली अगले दिन आये। मौलाना मुहम्मद अलीने उनके आगमन पर बड़े-बड़े मंसूबे बाँध रखे थे, क्योंकि उन्होंने यही मान रखा था कि वे गांधीजीको शायद, अपने निश्चयसे डिगा देंगे। दरअसल, गांधीजीने उनसे वादा किया था कि अगर शौकत अली या खुद वे उन्हें इस बातकी प्रतीति करा दें कि उनका उपवास करना नैतिक अथवा किसी भी वृष्टिसे गलत है तो वे अपना संकल्प छोड़ वेंगे। किन्तु, जहाँतक उपवास जारी रखनेका सम्बन्ध था, उनके साथ हुई लम्बी बातचीतका कोई नतीजा नहीं निकला। हाँ, उससे उपवासका भीतरी अर्थ और भी स्पष्ट अवश्य हुआ।

[ शौकत अली: ] महात्माजी, इस स्थितिका निराकरण करनेके लिए हमने सचमुच क्या किया है? लगभग कुछ नहीं। अपने अखबारके जरिये तो आप लोगोंसे अपनी बात अवश्य कहते रहे हैं, लेकिन उसके लिए आपने अभीतक कोई लम्बा बौरा नहीं किया है। तो कृपया आप प्रभावित क्षेत्रोंका दौरा करके वातावरणको शान्त और निर्मल बनायें। यह उपवास तो इस गलतीको दूर करनेका तरीका नहीं है।

[ गांधीजी: ] मेरे लिए तो यह विशुद्ध रूपसे एक धार्मिक प्रश्न है। मैंने अपने आसपास देखा, अपने मनको पूछा, टटोला और पाया कि में असमर्थ हूँ। लम्बी यात्रा करके भी मैं क्या कर सकता था? आज जनसाधारण हमें सन्देहकी दृष्टिसे देखता है। आप यह भी न समझिए कि दिल्लीके हिन्दुओंका मुझपर पूरा विश्वास है। उन्होंने मुझसे मध्यस्थता करनेके लिए भी एक-मत होकर नहीं कहा और यह स्वाभाविक ही था; क्योंकि हत्याएँ भी हुई हैं। जिन्होंने दुःख उठाया है, वे मेरी सुनेंगे, यह आशा मैं कैसे कर सकता हूँ? मैं तो उनसे उन लोगोंको माफ कर देने को ही कहूँगा जिन्होंने उनके सगे-सम्बन्धियोंका खून किया है। लेकिन यह किसको स्वीकार होगा? अंजुमन भी तो हकीम साहबकी नहीं सुन रहा है। जब उनके मामलेकी मध्यस्थता करनेके विषय में सोच-विचार कर रहे थे, मैंने कोहाटके बारेमें सुना। मैंने अपने-आपसे पूछा, "अब तुम क्या करने जा रहे हो?" मैं अदम्य आशावादी आदमी हूँ, लेकिन मेरी आशा बराबर ठोस तथ्योंपर आधारित होती है। आप भी वैसे ही आशावादी हैं, लेकिन आप अपनी आंशाका महल कभी-कभी बालूकी नींवपर भी खड़ा कर देते हैं। सच मानिए, आज आपकी कोई नहीं सुनेगा। गुजरात में

  1. महादेव देसाईकी डायरीमें छपे "द इनर मीनिंग ऑफ द फास्ट" (उपवासका मर्मं) शीर्षक लेखसे उद्धृत।
  2. नवजीवनके २८-९-१९२४ के अंकमें दी गई तिथि।