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शौकत अलीसे बातचीत

नहीं, मैं इसकी कोई जरूरत नहीं समझता। यह तो मेरे और ईश्वरके बीचकी बात है। और अगर मुझे किसीसे सलाह लेनी ही चाहिए तो बेहतर यही होता कि मैं यह प्रतिज्ञा करता ही नहीं। आप मेरे शरीर और स्वास्थ्यपर इसके प्रभावकी बात करते हैं, तो सुनिए, अगर मैं इतना दुर्बल हूँ कि इसे बरदाश्त नहीं कर सकता तो मर जाऊँगा। यह शरीर किस कामका है? जब मैं जेलमें था, मैंने आनन्दसे आह्लादित हो-होकर पैगम्बर साहबके साथियोंकी जीवनियाँ पढ़ीं। कहते हैं, एक बार हजरत उमरने किसीको उपहार स्वरूप ५०० दीनार भेजे। उन्हें देखकर उसका मन काँप गया और वह रोने लगा। उसकी पत्नीने पूछा कि क्यों रो रहे हो? उसने जवाब दिया, मेरे पास माया आई है। अब मेरा क्या होगा?" यह उपहार हजरत उमर-जैसे पाक आदमीने भेजा था। फिर भी उसे देखकर वह काँप उठा, क्योंकि वह माया थी, नश्वर पदार्थ था। जीवन भी वैसा ही है। अगर ईश्वरको अब भी इस शरीरसे कुछ काम लेना हो तो वह इसे कायम रखे। और उसे इससे जो काम लेना था, वह अगर वह ले चुका हो तो फिर इसे नष्ट हो जाने दे। दरअसल तो मैंने ऐसा सोचा था कि अगर उपवासकी यह अवधि पूरी होनेतक स्थिति नहीं सुधरती तो मैं स्थायी उपवासका व्रत लूँगा। हकीमजीने मुझसे ऐसा विचार मनमें न लाने को कहा। इसपर मैंने कहा, "लेकिन, मैं इसे अपने मनसे कैसे निकाल सकता हूँ? "यह मेरी रग-रगमें समाया हुआ है, यह मेरे अस्तित्वका अंश है। अगर मुसलमान हिन्दुओंके साथ सद्भावना स्थापित करना अपने धर्मके विरुद्ध नहीं मानते तो उन्हें उनके साथ सद्भावना स्थापित करनी चाहिए। अगर वे ऐसा मानते हों और मुझसे ऐसा कहें कि नहीं, यह हमारे धर्मके विरुद्ध है तो मेरा निश्चित मत है कि फिर मेरे जीवित रहने का कोई कारण नहीं रह जायेगा। उस हालतमें तो मुझे मर ही जाना चाहिए। अभी पिछले दिनों ख्वाजा अहमद निजामी साहबसे भी मेरी साफसाफ बातचीत हुई। मैंने उनसे कहा, "आप लावारिस बच्चों और अस्पृश्योंको ही मुसलमान क्यों बनाते हैं? अच्छा हो आप मुझे मुसलमान बनायें ताकि जब मैं इस्लामको स्वीकार कर लूँ तो दूसरे बहुत-से लोग भी मेरा अनुकरण करें। वे बेचारे इस्लाम कबूल करेंगे तो कुछ इस कारण से नहीं कि वे उसकी खूबियों को समझते हैं, उसके कारण तो कुछ और ही होंगे। इन लोगोंके मुसलमान बन जानेसे इस्लाम रंचमात्र भी समृद्ध नहीं होगा।

यह बातचीत बहुत ही प्रभावित करनेवाली थी। मैं इसके साथ न्यूनतम न्याय भी नहीं कर पाया हूँ। शौकत अली तो बिलकुल अभिभूतसे दिखाई पड़ रहे थे। वहाँसे उठते हुए उन्होंने कहा, "तीन बातोंके लिए मैं रोज ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ। एक तो है हिन्दू-मुस्लिम एकता; दूसरी यह कि मेरी माँ इस्लाम और भारतको आजाद देखनेके लिए जीवित रहे और तीसरी यह कि महात्मा गांधीका व्रत पूरा हो।"

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-१०-१९२४