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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जानेके बाद ही उठाया और मैंने ईश्वरको करुण स्वरमें उसी प्रकार टेरा जिस प्रकार द्रौपदीने उसे पुकारा था, जब लगता था कि उसके पाँच पराक्रमी संरक्षकोंने उसे छोड़ दिया है। ईश्वरके दरबारमें उसकी पुकार व्यर्थ नहीं गई। पुकारका यह स्वर मात्र होठोंसे नहीं बल्कि अन्तस्तलकी गहराई से उठना चाहिए। इसलिए ऐसी पुकार तभी सम्भव है जब आदमी सचमुच आन्तरिक व्यथासे विह्वल हो। मेरी पुकार इस उपवासके रूपमें निकली है, यद्यपि यह उपवास इस मामलेमें निहित समस्याकी दृष्टिसे किसी भी प्रकार पर्याप्त नहीं है। मेरा हृदय बार-बार कहता है:

"प्रभो, तू ही मेरा आश्रय है;
मुझे शरण दे। "

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, २५-९-१९२४

१३९. आधे घंटेका अभ्यास[१]

२१ सितम्बर, १९२४

मौलाना शौकत अलीकी यह स्नेहपूर्ण फटकार मुझे अच्छी ही लगी। यद्यपि इन दिनों में हर मामले में हार ही मान लिया करता हूँ, लेकिन यह नहीं जानता था कि मुझे 'बड़े भाई' के सामने भी हार माननी पड़ेगी। मैंने सोचा था कि उनका भारीभरकम और बेडौल शरीर कताईकी कोमल कलाके उपयुक्त नहीं है। अब मैं उनकी हलके कामोंको करनेकी क्षमताको घटाकर आँकनेके लिए उनसे क्षमा माँगता हूँ। इस तरहसे तो हजार बार हारकर भी मैं सुखी ही रहूँगा। अगर देशको लाभ हो तो मेरी हार क्या चीज है? मौलानाने जो नाराजगी के साथ इस बातका विरोध किया है कि कोई भी व्यक्ति उनके भारी-भरकम शरीरको देखकर उन्हें हलके कामोंसे बरी करनेका साहस करे, उसे मैं अपनी कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं मानता।

  1. यह मौलाना शौकत अली द्वारा एक पत्र में उठाये गये मुद्दोंके उत्तरमें लिखा गया था। प्रसंग यह था कि गांधीजीने मौलाना साहबके भारी-भरकम शरीरको देखते हुए उन्हें कताईकी शर्तसे मुक्त करने की बात लिखी थी। इसपर उन्होंने लिखा कि अगर मेरे कताई करनेसे देशको गुलामी से छुटकारा मिल सकता है तो मैं रोज आधे घंटेतक ही नहीं, सारा दिन कातने को तैयार हूँ। इसी सिलसिलेमें उन्होंने काठियावाड़में खिलाफत कोषके लिए चन्दा उगाहनेके अपने प्रयत्नका भी जिक्र किया था और लिखा था कि किस प्रकार कुछ मुसलमानों द्वारा गांधीजीपर उनकी (मौलाना साहबकी) आस्था होनेके कारण उनपर काफिर होनेका आरोप लगाये जानेके बावजूद उन्होंने काफी पैसा इकट्ठा कर लिया था। उन्होंने डा० अन्सारी और खिलाफत-कार्यालय के सभी कार्यकर्ताओंके कताईमें जुट जाने की भी चर्चा की थी; और अन्त में लिखा था कि "खुदाई फौज" में शामिल होनेके इच्छुक हर भारतवासीको---वह चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई, सिख हो या यहूदी, गरीब हो या अमीर, सभीको---रोजाना आधा घंटा कताई करके अपनी योग्यता प्रमाणित करनी चाहिए। देखिए यंग इंडिया, २५-९-१९२४।