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आधे घंटेका अभ्यास

उनके लिए कोई भी काम उनकी सामर्थ्यसे बहुत हलका या भारी नहीं है, यदि उससे देशको कुछ लाभ पहुँचता हो। क्या ही अच्छा होता, अगर प्रत्येक कार्यकर्त्ता इसी कड़ी कसौटीको अपनाकर चलता। मौलाना साहबने सूचित किया है कि खिलाफत-कार्यालयके सभी कार्यकर्त्ता इस काम में जुट गये हैं; डा० अन्सारीने भी अपने धन्धेके सिलसिले में अत्यन्त व्यस्त रहनेके बावजूद कताई शुरू कर दी है। यह सब जानकर शंकरलाल बैंकरके मुँहमें तो पानी भर आया होगा। अगर यह उत्साह बना रहा तो मैं आशा करता हूँ कि मुसलमान लोग इस दिशामें बहुत शानदार काम कर दिखायेंगे। मौलानाकी लोकप्रियताका अनुमान इसी बातसे लगाया जा सकता है कि उनके द्वारा उल्लिखित बदनाम करनेवाले पर्चे बँटवाये जानेके बावजूद, वे अपने काठियावाड़के दौरेमें खिलाफत समिति के कोषके लिए २५,००० रुपये नकद ले आये और लगभग दस हजार रुपयेके वादे भी। इन पर्चोंके लेखकोंको मालूम नहीं कि हमारे सम्बन्धोंका आधार क्या है। जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ,[१] हम हर बात में एक-दूसरे से भिन्न हैं, फिर भी एक चीज ऐसी है जो हम दोनोंको बाँधे हुए है। हम दोनों ही गुलामीसे तंग आ चुके हैं। किसी भी मानवकी उचित स्वतन्त्रताका अपहरण हमें नागवार गुजरता है। इसलिए हमने ईश्वरकी गुलामी स्वीकार की है। हम समस्त मानव समाजके मुकाबले खड़े हो सकें, बल्कि जरूरत पड़े तो उसका विरोध भी कर सकें, इसी खयालसे हम दोनों सबकी रचना करनेवाले उस कुम्हारके हाथमें मिट्टीके पुतले बन गये हैं। वह चाहे हमें जैसे घड़ ले, मसल-कुचल दे, उलट-पुलट दे, फिर भी हम उसीके हैं। हम दोनोंको जोड़कर रखनेवाला यहीं एक तत्त्व है। मैं मानता हूँ कि उस तत्त्वमें बाँधनेकी, जोड़नेकी क्षमता है और इसलिए उसने हमें एक-दूसरेसे इस तरह जोड़ रखा है कि हम कभी भी अलग नहीं हो सकते। इसलिए ऐसा कहना कि मौलाना साहब मुझे ईश्वरकी तरह पूजते हैं, मौलाना साहब के ही शब्दों में ईश्वरकी निन्दा तो है ही, साथ ही हमारे सम्बन्धोंके बारेमें उनके घोर अज्ञानका भी द्योतक है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-९-१९२४
  1. देखिए "टिप्पणियाँ", १८-९-१९२४, उप-शीर्षक "हृदयकी एकता"।