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१४०. उनके प्रति हमारा कर्त्तव्य

२१ सितम्बर, १९२४

श्री एन्ड्रयूजने अपने "आदिवासी जातियाँ" शीर्षक लेखमें[१] अपनी सधी लेखनीसे बड़े ही सुन्दर ढंगसे तीन चीजों को एक साथ पिरो दिया है। श्री अ० वि० ठक्करने पंचमहालके 'भील-सेवा-मण्डल' के कोषमें धन देनेके लिए जो जोरदार अपील की थी, उसका उन्होंने समर्थन किया है। श्री एन्ड्रयूज के उद्गारोंसे मैं हार्दिक सहमति प्रकट करता हूँ। और श्री ठक्करका परिचय भला मैं क्या दे सकता हूँ! वे तो मेरे भारत लौटने और प्रसिद्धि अर्जित करनेसे पहले ही मातृभूमिकी सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित कर चुके थे। गुजरातने उड़ीसा के अकाल-पीड़ितोंके लिए जो सहायता-कार्यका संगठन किया था, श्री ठक्कर द्वारा उसका सुयोग्य संचालन हमें आज भी अच्छी तरह याद है। गुजरातके अस्पृश्योंके प्रति अपने एकनिष्ठ सेवाभावके कारण वे उनकी आँखोंका तारा बन गये हैं। किन्तु उन्हें तो सेवाकी धुन लगी हुई है, सो उनका ध्यान अब गुजरात के एक ऐसे वर्गकी ओर गया जो अस्पृश्योंसे भी अधिक गिरी हुई अवस्थामें है और जिसे सहारा देनेवाले हाथकी और ज्यादा जरूरत है। इसलिए वे पंचमहालके भोले-भाले भीलोंके त्राता बन गये हैं। आशा है, लोग श्री ठक्करकी अपील अनसुनी नहीं करेंगे।

आदिवासियोंके सम्बन्ध में लिखते हुए श्री एन्ड्रयूजके लिए भला यह कैसे सम्भव था कि वे अपने मित्र, शिष्य और सहयोगी विली पियर्सनकी चर्चा न करते? भारतकी सेवाके लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देनेवाले और नेकसे-नेक अंग्रेजकी श्रेणी में आनेवाले इस व्यक्तिकी स्मृतिमें समुचित प्रशंसाके दो शब्द कहने का अवसर वे हाथसे कभी नहीं जाने देते। श्री गोखलेने जब श्री एन्ड्रयूजसे दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहियोंकी सहायता के लिए तत्काल वहाँ जानेको कहा तो विली पियर्सनने स्वेच्छासे अपनी सेवाएँ अर्पित कीं और वे श्री एन्ड्रयूजके साथ दक्षिण आफ्रिका गये थे। जब मैंने इन दोनों अंग्रेजोंको देखा तो मेरे साथ पहली नजर में प्यार वाली बात चरितार्थ हो गई। ये पंक्तियाँ लिखाते समय भी पियर्सनकी सुन्दर मुखाकृति, उनकी आँखोंका निष्कपट, सौम्य और मोहक भाव मेरे सामने सजीव हो उठता है। मुझे पियर्सनको पहले दक्षिण आफ्रिकामें और फिर शान्तिनिकेतनमें कार्यरत देखनेका अवसर मिला। उनसे अधिक आत्म-त्यागी और कर्त्तव्यनिष्ठ व्यक्ति मिल पाना कठिन है। ईमानदारीका कोई भी काम वे अपनी शानके खिलाफ नहीं समझते थे। उनके लेखे तो काम जितना छोटा होता वह उतनी ही ज्यादा इज्जतका था। शान्तिनिकेतनमें रसोईघरकी नालियों और मेहतरोंके घरोंको साफ करनेके लिए अपनी सेवाएँ उन्होंने ही सबसे

  1. २ अक्तूबर, १९२४ के यंग इंडियामें प्रकाशित।