पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/२४६

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१४५. पत्र: अब्बास तैयबजीको

मार्फत मौलाना मुहम्मद अली
दिल्ली
२१ सितम्बर, १९२४

भाई साहब,

मेरे उपवासके कारण आप सब चिन्तित हो रहे होंगे। लेकिन मैं क्या करता? मैं तो विवश था। मेरे पास खुदाके आगे रोनेके सिवा और कोई रास्ता ही न था। ऐसी हालतमें मैं कर ही क्या सकता था? खुदाकी मर्जी होगी तो वह मुझे मरने न देगा। इस समय मुझे रेहानाके भजन सुननेकी बड़ी इच्छा हो रही है। आपके खेड़ामें चरखे खूब चल रहे होंगे। भुर्रर्र....

सदैव आपका भाई,
मोहनदास गांधी

गुजराती पत्र (एस० एन० ९५४९) की फोटो-नकलसे।

१४६. पत्र: देवदास गांधीको

दिल्ली
भाद्रपद बदी ८ [२१ सितम्बर, १९२४][१]

चि० देवदास,

बा, रामदास आदि आ गये हैं। जमनाबहन और यशवन्तप्रसाद भी आये हुए हैं। 'नवजीवन' देखा। मुझे तो बहुत पसन्द आया। तुम्हारा वस्तु-विन्यास और बड़े अक्षरों द्वारा की गई सजावट भी अच्छी है। तुमने मेरे सन्देशका[२] जो अनुवाद किया है वह तो बहुत ही सुन्दर है। उसमें मुझे कहीं जरा भी सुधार करनेकी गुंजाइश दिखाई नहीं दी। "होपलेसनैस"[३] के स्थानपर "हैल्पलेसनेस"[४] का उपयोग करके तुमने मेरे उत्तराधिकारी होने के अधिकारको सिद्ध कर दिया है। ईश्वर तुम्हें दीर्घायु करे और तुममें आज जो चारित्र्य-सौन्दर्य और कौशल है, उसमें वृद्धि करे। मैं अत्यन्त आनन्दमें हूँ। अभी तो उपवास [का कोई प्रभाव] मालूम ही नहीं हो रहा है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २१३३) की फोटो-नकलसे।

  1. पत्रमें उपवासकी जो चर्चा की गई है उससे पता चलता है कि यह पत्र १९२४ में लिखा गया था।
  2. देखिए "गांधीजीका खुलासा", १८-९-१९२४।
  3. और
  4. मूलमें ये दोनों शब्द अंग्रेजीमें दिये गये हैं। देखिए "टिप्पणी", २१-९-१९२४।