१४७. पत्र: गंगाबहन वैद्यको
[ दिल्ली ]
भाद्रपद बदी ८ [२१ सितम्बर, १९२४][१]
आप चिन्ता न कीजिएगा। आप तो ज्ञानी हैं। मैं धर्मके पालनके लिए जो उपवास आदि करता हूँ, मेरी इच्छा है कि उससे आप सब प्रसन्न हों। यदि ईश्वरको इस देहसे मेरे द्वारा अभी कोई काम कराना होगा तो वह मुझे मरने न देगा। आप भी ऐसा ही विश्वास रखें।
अभ्यास लगनके साथ जारी रखना। सब बालकोंकी माँ बनना। यह आपकी शक्तिसे बाहर नहीं है।
भगवान आपको इतनी शक्ति दे जिससे आपका वैधव्य जगत के लिए उपकारी सिद्ध हो।
बापूके आर्शीवाद
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१९७) से।
सौजन्य: गंगाबहन वैद्य
१४८. पत्र: तुलसी मेहरको
दिल्ली
[२१ सितम्बर, १९२४][२]
आश्रमका पत्र तुमारे नामपर भेजनेका निश्चय मैंने कल ही कीया था। आज तो तुमारा पत्र आ गया। तुम और दुसरे आश्रमवासीयोंसे मेरी तो यही प्रार्थना है की सब सत्य और अहिंसाका सेवन करें। जगतमें किसी प्राणीकी घृणा न करें, और क्षुधासे पीड़ीत करोड़ो हिन्दवासीयों युवाकाते बुने और उसीका प्रचार करें। अक्षरज्ञान अवश्य हासिल करे। मानसिक शक्तिमें वृद्धि करें। प्रांत चरखाको प्रधान पद दे।