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उपवासकी कहानी

माताका रोना-धोना, न गुरुकी सलाह, न जनताका अनुनय-विनय और न यह निश्चित सम्भावना ही कि उनके ऐसा करनेसे उनके पिता जीवित नहीं रह पायेंगे, उन्हें अपने संकल्पसे डिगा पाये। ये बातें क्षणिक हैं। अगर रामने इन समस्त प्रलोभनोंके सामने अपना हृदय वज्र न कर लिया होता तो हिन्दू-धर्मको धर्मका सच्चा स्वरूप ही प्राप्त नहीं होता। वे जानते थे कि अगर उन्हें मानवताकी सेवा करनी है और भावी सन्ततिके लिए एक आदर्श बनना है तो उन्हें हर कष्टसे गुजरना होगा।

लेकिन, क्या एक मुसलमान के घर बैठकर मेरा उपवास करना उचित था? हाँ, बिलकुल उचित था। मेरे मनमें उपवासका विचार किसीके प्रति दुर्भावनासे प्रेरित होकर नहीं आया। मैं एक मुसलमानके घर बैठा हुआ हूँ, इससे मेरे उपवासका कोई ऐसा अर्थ समझे जानेकी गुंजाइश बिलकुल नहीं रह जाती। इसे एक मुसलमानके घर शुरू और खतम करना सर्वथा संगत है।

मुहम्मद अली हैं कौन? उपवाससे दो ही दिन पहले एक निजी मामलेपर हम दोनोंकी बातचीत हुई थी। उस दौरान मैंने उनसे कहा था कि जो मेरा है, वह आपका है और जो आपका है, वह मेरा भी है। मैं लोगोंको कृतज्ञतापूर्वक यह बता देना चाहता हूँ कि मेरा जैसा स्वागत-सत्कार मुहम्मद अली के घर हो रहा है, उससे अच्छे स्वागत-सत्कारका सौभाग्य मुझे जीवनमें कभी नहीं मिला। मेरी हर जरूरतका अन्दाजा वे पहले ही कर लेते हैं। उनके घरके हर व्यक्तिको सबसे ज्यादा इसी बातकी लगी रहती है कि किस तरह मुझे और मेरे साथियोंको अधिकसे-अधिक सुख-सुविधा दी जा सकती है। डा० अन्सारी और डा० अब्दुर्रहमान तो मेरे स्वास्थ्य-सलाहकार ही बन गये हैं। वे हर रोज मुझे देखते हैं। जीवनमें मुझे अनेक सुखदायी अवसर मिले हैं; यह उनमें से किसीसे घटकर नहीं है। भोजन ही सब कुछ नहीं है। यहाँ मुझे अगाध प्रेम प्राप्त हो रहा है और वह भोजनसे बढ़कर है।

कुछ लोग गुप-चुप ऐसी चर्चा करते हैं कि मैं मुसलमान भाइयोंमें इतना पगा रहता हूँ कि हिन्दुओंके मनका भाव जानने लायक रह ही नहीं गया हूँ। हिन्दुओंके मनका भाव तो मेरे ही मनका भाव है। जब मेरे अस्तित्वका कण-कण हिन्दू है तो हिन्दुओंके मनका भाव जाननेके लिए मुझको उनके बीच रहनेकी क्या जरूरत है? अगर मेरा हिन्दुत्व प्रतिकूलसे-प्रतिकूल वातावरण में फूल-फल नहीं सकता तो अवश्य ही वह बहुत क्षुद्र वस्तु है। मुझे तो इस बातका सहज ज्ञान है कि हिन्दू-धर्मके लिए क्या कुछ जरूरी है। लेकिन, मुसलमानोंके मनका भाव जाननेके लिए तो मुझे परिश्रम और प्रयत्न करना ही है। अच्छेसे-अच्छे मुसलमानोंके में जितना निकट आता जाऊँगा, मुसलमानों और मुसलमानोंके कार्योंके बारेमें सही अनुमान लगानेकी मेरी उतनी ही सम्भावना होगी। मैं दोनों जातियोंको जोड़नेवाला सबसे अच्छा गारा बननेकी कोशिशमें हूँ। मेरी कामना ही यही है कि जरूरत पड़े तो इसे मैं अपने खूनके गारेसे जोड़ें। लेकिन, ऐसा करनेके लिए मुझे मुसलमानोंको यह दिखा देना चाहिए कि मैं जितना प्यार हिन्दुओंको करता हूँ, उतना ही उन्हें भी करता हूँ। मेरा धर्म मुझे सबको समानरूपसे प्यार करनेकी सीख देता है। ईश्वरसे यही प्रार्थना है कि वह इस काममें मुझे सहायता