पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/२५३

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१५१. तार: एस० श्रीनिवास आय्यंगारको

[२२ सितम्बर, १९२४][१]

धन्यवाद। उपवास छोड़ने का अर्थ होगा अपने गहनतम विश्वासोंको छोड़ना। क्या आप मुझसे वैसा कराना चाहेंगे? कृपया चिन्ता न करें।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू,२२-९-१९२४

१५२. पत्र: सरलादेवी चौधरानीको

दिल्ली
२२ सितम्बर, १९२४

तुम्हारा करुण अनुरोध पढ़ा। मैं जीवित जरूर रहना चाहता हूँ। मैं तो ४० दिनका व्रत ले रहा था; किन्तु गहराईसे विचार करनेपर मैंने देखा कि स्थितिका ध्यान रखते हुए जितना कमसे कम आवश्यक हो, मुझे उतना ही उपवास करना चाहिए। यदि ईश्वर इस शरीरसे और अधिक सेवा कराना चाहता है तो वह निश्चित रूपसे इसको बनाये रखेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रिब्यून, २७-९-१९२४

१५३. काम नहीं तो राय नहीं

२३ सितम्बर, १९२४

मौलाना हसरत मोहानीने अभी उस दिन मुझे सोवियत-संविधान देते हुए कहा कि इसे पढ़िए--यदि और किसी वजहसे नहीं तो सिर्फ इसीलिए कि कांग्रेसके संविधान और सोवियत संविधान में कितनी स्पष्ट समता दिखाई देती है। मैंने उसे सरसरी तौरपर पढ़ा तो देखा कि दोनों संविधानोंके रूपमें निःसन्देह स्पष्ट समता है। यह समता बतलाती है कि इस भूमण्डलपर कोई बात मौलिक और नई नहीं है। दोनोंमें मुझे बहुत बुनियादी किस्मके कुछ फर्क भी दिखे, पर उनकी चर्चा करने की जरूरत नहीं। किन्तु, उसकी एक बातपर तो मैं लट्टू हो गया। वह थी "काम नहीं तो राय नहीं" का सूत्र। सोवियत-संविधानमें सदस्यकी पात्रता न पैसेसे परखी जाती

  1. "एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया" ने इसे मद्राससे २२ सितम्बरको प्रकाशित किया।