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काम नहीं तो राय नहीं

श्रम इतना मामूली काम है कि इन अत्यन्त परिश्रमी कार्यकर्त्ताओंके लिए भारी पड़ ही नहीं सकता। ऐसी हालतमें इस प्रस्ताव के खिलाफ जो कुछ ज्यादासे-ज्यादा कहा जा सकता है वह यही कि इस मेहनतका कुछ फल न निकलेगा। जरा फर्ज कीजिए कि स्वराज्य या चटपट आर्थिक मुक्तिकी दृष्टिसे इसका कुछ फल न होगा, पर अखिल भारतीय खादी-बोर्ड के पास अगर हर माह मनों सूत आता रहे और उसकी बदौलत सस्ती खादी बनती रहे तो क्या यह निष्फल होगा? नहीं। राष्ट्रीय उत्पादनमें एक गज कपड़े के योगको भी निष्फल श्रम नहीं कहा जा सकता।

दूसरा एतराज उसपर यह किया गया है कि उससे कांग्रेसके हजारों मतदाताओंका मताधिकार छिन जायेगा। पर मैं कहने का साहस करता हूँ कि यह एतराज बिलकुल बेबुनियाद है। मतदाता वही होता है जो अपनी संस्थाके काम में लगनसे दिलचस्पी लेता हो। हमारे मतदाता ऐसे नहीं हैं। कसूर उनका नहीं, हमारा है। हमने उनमें काफी दिलचस्पी नहीं ली और जबतक हमें एड़ न लगाई जाये तबतक हम ऐसा करेंगे भी नहीं। तकुआ ही वह एड़ है। हर महीने कांग्रेस के अधिकारियों- को हरएक मतदातासे अपना सीधा सम्पर्क रखना पड़ेगा। यह बिलकुल स्पष्ट बात है; ताज्जुब है कि इसे भी समझाने की जरूरत पड़ती है। हर महीने अपने कामका हिसाब देनेवाले हजारों सच्चे कार्यकर्त्ताओंकी एक संस्थाकी सम्भावनाओंकी कल्पना तो कीजिए। क्या संख्यामें थोड़े, पर उत्साही काम करनेवालोंकी सजीव संस्था उस संस्थासे हजारों गुनी अच्छी नहीं है जिसमें हजारों ऐसे सदस्य हों, जिन्हें उनके कामकी परवाह ही न हो और जो कुछ आदमियोंके इशारेपर अपनी राय देनेसे अधिक अपना कोई कर्त्तव्य ही न समझते हों। पर आसार तो ऐसे दिखाई देते हैं कि यदि हम आवश्यक परिवर्तन करनेका साहस-मात्र दिखायें तो हमें इतनी बड़ी तादादमें मतदाता लोग मिलेंगे जो हमारे अन्दाजसे बहुत ज्यादा होंगे। दूसरे महीने में सूत भेजनेवालोंकी तादाद पहले महीनेके दुगुने से भी ज्यादा है। यदि हर प्रान्तका हर कार्यकर्त्ता राजी-खुशीसे कातनेवालोंका खासा संगठन करे तो कतैयोंकी संख्यामें हमें बराबर वृद्धि ही दिखाई देगी और ताज्जुब नहीं कि कुछ ही महीनोंमें यह तादाद दो लाखतक पहुँच जाये। दो लाख के मानी हैं हर प्रान्तमें दस हजार और हर प्रान्त औसतन दस हजार स्वेच्छापूर्वक कातनेवाले लोग तैयार कर सके, इसके लिए किसी असाधारण संगठन क्षमताकी जरूरत नहीं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि मेरा प्रस्ताव नामंजूर नहीं होगा।

मैंने जान-बूझकर अपने प्रस्तावको छोटेसे-छोटा समान माप कहा है, बड़ेसे बड़ा नहीं। छोटेसे-छोटे मापका मतलब यह नहीं है कि वह सारे देश द्वारा स्वीकार किये जाने योग्य छोटेसे-छोटा है, बल्कि देशकी उद्देश्य-सिद्धि के लिए कमसे कम आवश्यक माप है। मेरा मत है कि यदि हमें रक्तपातके बिना स्वराज्य प्राप्त करना हो तो मेरी बताई ये तीनों बातें परम आवश्यक हैं। यदि हमारा यह आदर्श हो कि कार्य-क्षमताकी परवाह किये बिना जितने सदस्य बनाये जा सकें, बनाये जायें, तब तो हिन्दू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यताको भी नमस्कार कर लेना होगा। कारण, मैं जानता हूँ कि