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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अस्पृश्यता निवारणके लिए जहाँ-कहीं हमने जोर-शोरसे काम किया है, वहीं बहुतेरे लोग कांग्रेससे अलग हो गये हैं। वे अब भी उसे हिन्दू-धर्मका अभिन्न अंग मानकर उससे चिपटे हुए हैं। यही बात हिन्दू-मुस्लिम एकताके सम्बन्धमें भी कही जा सकती है। कारण, हालके अनुभवोंने यह दिखला दिया है कि कितने ही लोग ऐसे हैं जो न केवल हिन्दू-मुस्लिम एकता के इच्छुक नहीं हैं, बल्कि हमारे मतभेदोंको बराबर बनाये रखना चाहते हैं। जरा-जरा-सी बातपर वे झगड़ा खड़ा करना चाहते हैं। वे बहाने बनानेमें भी नहीं हिचकते। ऐसी अवस्थामें यदि हम अपने आन्तरिक विकासके लिए आवश्यक सभी चीजोंकी उपेक्षा कर देते हैं तो फिर कांग्रेस राष्ट्रकी पुकारपर एकजुट होकर एक व्यक्तिकी तरह दौड़ पड़नेवाली संस्थाके बजाय मछुओंका बाजार बन जायेगी। कमसे-कम मैं तो ऐसी संस्थामें, जहाँ ये तीनों चीजें एक जीवन्त सत्यके रूप में विद्यमान न हों, बिलकुल पथरा जाऊँगा और यदि इसे 'बाइबिल' की पवित्रता भंग करना न माना जाये तो उसके एक वचनका उपयोग करते हुए मैं कहूँगा--पहले तुम हिन्दू-मुस्लिम एकता प्राप्त करो, छुआछूत हटाओ, चरखा और खादीको अपनाओ, फिर दूसरी तमाम चीजें तुम्हें अपने-आप मिल जायेंगी।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया,२५-९-१९२४

१५४. तार: मु० रा० जयकरको[१]

[२३ सितम्बर, १९२४][२]

मैं अपने शास्त्रोंकी भावनाका वाच्यार्थ नहीं लेता। मेरा विचार है प्रायश्चित्त उचित है। कृपया मेरी चिन्ता न करें। स्वास्थ्य बिलकुल ठीक है।

[ अंग्रेजीसे ]
द स्टोरी ऑफ माई लाइफ, खण्ड-२
  1. गांधीजीके स्वास्थ्य के बारेमें जयकर द्वारा की गई पूछताछके उत्तर में।
  2. जपकरको यह तार इसी तारीखको मिला था।