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१५७. पाठकों से

दिल्ली
बुधवार, भाद्रपद बदी ११ [२४ सितम्बर, १९२४]

मैं आपको क्या लिखूँ? मेरा और आपका सम्बन्ध, मेरी दृष्टिमें असाधारण है। 'नवजीवन' के सम्पादकका पद मैंने न तो धन-लोभसे ग्रहण किया है और न कीर्ति-लोभसे। मैंने तो अपने शब्दोंके द्वारा आपके हृदयका स्पर्श करनेके लिए यह पद स्वीकार किया है। मेरे हाथ यह अनायास ही आ पड़ा। परन्तु जबसे आया है तबसे मैं आपका ही चिन्तन करता रहा हूँ। मैंने प्रति सप्ताह 'नवजीवन' में अपनी आत्मा उड़ेलने का प्रयत्न किया है। इसमें मैंने एक भी शब्द ईश्वरको साक्षी रखे बिना नहीं लिखा है। आपको जो प्रसादी पसन्द हो, वही देना, मैंने अपना धर्म नहीं समझा। कितनी ही बार मैंने कड़वे घूँट भी पिलाये हैं। किन्तु कड़वे या मीठे हरएक घूँटमें मैंने वही बताने की कोशिशकी है, जिसे मैंने निर्मल धर्म माना है, जिसे मैंने स्वच्छ देश-सेवा माना है।

आज जो मैं उपवास कर रहा हूँ, सो इस सम्पादक-पदके अधिक योग्य बनने के लिए। मैं जानता हूँ कि 'नवजीवन' के अनेक पाठक भाई-बहन मेरे लेखोंसे मार्ग-दर्शन ग्रहण करते हैं। कहीं मैंने उनका गलत मार्ग-दर्शन करके उन्हें हानि पहुँचाई हो तो? यह खयाल मुझे बराबर सालता रहता था।

अस्पृश्यता के बारेमें मुझे कभी लेश-मात्र भी शंका नहीं हुई। चरखे के विषय में तो ऐसी शंकाके लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है। वह लँगड़े की लाठी है। वह भूख से पीड़ितोंकी भूख मिटानेका साधन है, निर्धन स्त्रियोंके सतीत्वकी रक्षा करनेवाला किला है। जबतक इसे सब लोग स्वीकार नहीं करते, तबतक हिन्दुस्तानकी फाकाकशी मिटना मैं असम्भव मानता हूँ। इस कारण चरखा चलानेमें अथवा उसका प्रचार करनेमें भूलके लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है।

हिन्दू-मुसलमान ऐक्यकी आवश्यकता के विषय में भी संशयके लिए कोई स्थान नहीं है। उसके बिना स्वराज्य आकाश-कुसुमके समान है।

परन्तु मैं जिस महान अहिंसाकी बात करता हूँ, उसे ग्रहण करनेके लिए आप तैयार हैं या नहीं, इसके विषयमें मुझे सदा शंका बनी रही है। मैंने तो पुकार-पुकार कर कहा है कि अहिंसा--क्षमा--वीरका लक्षण है। जिसमें मारने की शक्ति है, वही मारनेसे अपनेको रोक सकता है। मेरे लेखोंको पढ़कर कहीं आप भीरुताको अहिंसा मान लें तो? अपनोंकी रक्षा करनेके धर्मको खो बैठें तो? तब तो मेरी अधोगति ही होगी। मैंने कितनी ही बार लिखा है और कहा है कि कायरता कभी धर्म हो ही नहीं सकती। इस संसारमें तलवारके लिए जगह जरूर है, लेकिन कायरता के लिए कोई जगह नहीं है। कायरका तो क्षय ही हो सकता है और उसका क्षय