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१६५. पत्र: नरहरि परीखको

भाद्रपद बदी ३० [ २८ सितम्बर, १९२४ ][१]

भाई नरहरि,

महादेव तुमको रोज लिखता है, इसलिए मैंने कोई पत्र नहीं लिखा। लेकिन तुम्हारा और जुगतरामका ध्यान बराबर बना रहता है। मेरी लिखावट देखकर ही समझ जाओगे कि उपवासका मुझपर बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ है। मैं खूब शान्त हूँ और पूरे आनन्दका अनुभव कर रहा हूँ। मेरी कोई चिन्ता न करना। सभी भाई-बहनोंसे मेरा वन्देमातरम् कहना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ९०४६) की फोटो-नकलसे।

१६६. हृदय परिवर्तन

२९ सितम्बर, १९२४

अबतक तो हम, जिन अंग्रेजोंसे भारत सरकार बनी हुई है, उनके हृदय-परिवर्तनके लिए प्रयत्नशील और उत्कंठित रहे। वह परिवर्तन तो अभीतक नहीं आ पाया है। फिर भी हमें कुछ समयके लिए अंग्रेजोंके बजाय हिन्दुओं और मुसलमानोंके हृदय-परिवर्तन के लिए प्रयत्न करना है। जबतक उनमें इतनी बहादुरी नहीं आ जाती कि वे एक-दूसरेको प्यार कर सकें, एक-दूसरेके धर्म, बल्कि पूर्वग्रहों और अंधविश्वासोंके प्रति भी सहिष्णुता बरत सकें तथा एक-दूसरेका विश्वास कर सकें, तबतक उन्हें स्वराज्यकी बात सोचनेका साहस नहीं करना चाहिए। इस सबके लिए आत्म-विश्वासकी जरूरत है और आत्म-विश्वासका मतलब ईश्वरमें विश्वास रखना है। अगर हमारे अन्दर वह विश्वास पैदा हो जाये तो हम एक-दूसरेसे बिलकुल नहीं डरेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-१०-१९२४
  1. उपवासके उल्लेखसे।