पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१६७. पत्र: श्रीमती हॉजकिन्सनको

[ ३० सितम्बर, १९२४ ][१]

प्रिय श्रीमती हॉजकिन्सन,

पत्रके लिए धन्यवाद। मैं प्रतिदिन ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे राह दिखाये। प्रार्थना करनेके बाद ही मैंने उपवास प्रारम्भ किया। मैंने मरनेके लिए ऐसा नहीं किया, बल्कि सेवाके उद्देश्य से अधिक अच्छे और शुद्ध मनुष्यके रूपमें जीने के लिए ही ऐसा किया है। किन्तु यदि ईश्वरकी ही इच्छा कुछ और हो तो उसे कौन टाल सकता है? मैं आपकी इस बातसे बिलकुल सहमत हूँ कि मानवीय प्रयत्नसे कभी एक दिनमें एकता स्थापित नहीं हो सकती, किन्तु आस्थाका बल और प्रार्थना तो चमत्कार उत्पन्न कर सकते हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रिन्यून, ३-१०-१९२४

१६८. सन्देश: 'गुणसुन्दरी' को[२]

स्वराज्यकी डोर बहनोंके हाथमें है। वह डोर आज उनके हाथसे छूट गई है। अगर वे सुन्दर और मजबूत सूत कातें तो उसके बलपर वे अभी भी स्वराज्यको, वह जहाँ कहीं हो वहाँसे खींच ला सकती हैं।

मोहनदास गांधी

[ गुजरातीसे ]
गुणसुन्दरी, अक्तूबर, १९२४
  1. यह पत्र श्रीमती हॉजकिन्सनको इसी दिन मिला था।
  2. एक गुजराती मासिक पत्रिका।