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१६९. सन्देश: एनी बेसेंटके जन्म-दिवसपर [१]

[ १ अक्तूबर, १९२४ से पूर्व ]

मुझे अफसोस है कि मैं डा० एनी बेसेंटके जन्म-दिवस समारोहमें उपस्थित नहीं हो सकता। मैं प्रतीक्षा कर रहा था कि मुझे इस सिलसिलेमें बम्बईकी एक सभाकी अध्यक्षता करनेका सौभाग्य मिलेगा। किन्तु विधिकी इच्छा के सामने मनुष्यके संकल्पोंका क्या अर्थ होता है? मैं यह खयाल भी नहीं करता था कि मुझे यह प्रायश्चित्त करना पड़ेगा, जो ईश्वर मुझसे करा रहा है। आशा है, सभामें आये सभी लोग मुझे क्षमा करेंगे। किन्तु यद्यपि मेरा शरीर वहाँ उपस्थित नहीं रहेगा, फिर भी मेरी आत्मा वहीं रहेगी। डा० बेसेंटकी ख्याति दुनिया भरमें है। यह भारतके लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है कि उन्होंने भारत माताको अपनी माता माना है और अपने सारे अनुपम गुणोंको उसकी सेवामें अर्पित कर दिया है। वे इस आयुमें भी, जब कि लोग पूर्ण विश्राम करनेके अधिकारी होते हैं, अद्भुत स्फूर्ति और उत्साहसे लिख रही हैं और भाषण देने, यहाँ-वहाँ आने-जाने और भारतकी मुक्तिकी योजनाएँ तैयार करने में लगी हुई हैं। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियोंमें उनका अदम्य उत्साह, उनकी महान् संगठन-शक्ति, उनकी साहित्यिक प्रतिभा और वक्तृत्व कला तथा बहुत से दूसरे गुण, जिनका मैं उल्लेख कर सकता हूँ, हमारे लिए ऐसी निधियाँ हैं, जिनपर हमें गर्व होना चाहिए और जिनका सदुपयोग करना चाहिए। इसलिए जब मेरा उनसे मतभेद हुआ तो मुझे दुःख हुआ था। लेकिन अब इस बातसे मुझे उतनी ही प्रसन्नता भी है कि हम एक-दूसरे के अधिक निकट आते दिखाई दे रहे हैं। ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दे और वे उस स्वराज्यको स्थापित हुआ देख सकें, जिसके लिए वे और हम कठिन प्रयास कर रहे हैं और जिसके लिए धैर्यपूर्वक सतत प्रयत्न करनेमें कोई भी उनसे आगे नहीं बढ़ सकता।

[ अंग्रेजी से ]
न्यू इंडिया, २-१०-१९२४
  1. यह १ अक्तूबरको कावसजी जहांगीर हॉल, बम्बईमें हुई एक सभामें पढ़ा गया था। यह सभा बम्बई प्रान्तीय कांग्रेस, स्वराज्य-सभा तथा अन्य सार्वजनिक संस्थाओंके तत्त्वावधानमें डा० बेसेंटकी ७८ वीं वर्षगाँठ तथा उनके सार्वजनिक जीवनकी जयन्ती मनानेके लिए की गई थी। मुहम्मद अली जिन्नाने इसकी अध्यक्षता की थीं। इसमें एनी बेसेंट भी उपस्थित थीं। देखिए "पत्र: एनी बेसेंटको", १८-९-१९२४।