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१७२. सन्देश: अन्तर्राष्ट्रीय अफीम सम्मेलनको[१]


[ २ अक्तूबर, १९२४ से पूर्व ]

महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ ठाकुरने अपने हस्ताक्षरोंमें यह सन्देश दिया है:

हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले लोग नशीली चीजोंकी इस बढ़ती हुई लतको व्यक्तियों और राष्ट्रोंके लिए घातक खतरा मानते हैं। इन चीजोंसे मानव-जातिके शरीरमें अन्दर ही अन्दर बड़ी तेजी से जहर फैल रहा है। हम इस बुराईको राष्ट्रोंके आपसी सहयोगसे ही रोक सकते हैं। अतः हम लोग नवम्बर १९२४ में जो अन्तराष्ट्रीय अफीम सम्मेलन हो रहा है उससे सादर निवेदन करते हैं कि जिन पौधोंसे ये नशीली चीजें बनती हैं, उनको पूर्णतः नष्ट करनेके लिए समुचित उपाय करे। केवल उतने ही पौधे छोड़े जायें जितनेको संसारके सर्वोत्तम चिकित्सा-शास्त्रियोंकी रायमें औषधियों और विज्ञानकी दृष्टिसे रखना आवश्यक हो।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-१०-१९२४

१७३. भाई परमानन्दके सन्देशका उत्तर

[ २ अक्तूबर, १९२४ ][२]


भाई परमानन्दके सन्देशके उत्तरमें श्री गांधीने तार भेजा है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि केवल ईश्वर ही जानता है कि मैंने उपवास आरम्भ करके पाप किया है या नहीं। यदि कोहाटके शरणार्थियोंको मेरे प्राण देनेसे सान्त्वना मिले तो मैं वैसा करनेके लिए तैयार हूँ। यदि कोहाटका शिष्टमण्डल मुझसे उपवास त्यागनेका आग्रह करनेके लिए ही दिल्ली आना चाहता है तो उसका आना व्यर्थ है। यदि नहीं, तो वैसे उनसे भेंट करनेमें मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होगी।

[ अंग्रेजी से ]
न्यू इंडिया३-१०-१९२४
  1. यह सम्मेलन जनेवामें हुआ था। न्यू इंडियाके २२-११-१९२४ के अंकमें निम्न समाचार छपा था: "जनेवा, २० नवम्बर: श्री अलेक्जेंडर ने कहा कि उन्हें आज श्री गांधीका एक तार मिला है जिसमें कहा गया है कि भारत दवाओंको छोड़कर दूसरे सभी उद्देश्योंके लिए अफीम-व्यापारका उन्मूलन चाहता है।"
  2. यह समाचार 'एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया' ने अहमदाबादसे इसी तारीखको प्रकाशनके लिए भेजा था।