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१७५. पत्र : जमनादास गांधीको

रविवार, आश्विन सुदी ७ [ ५ अक्तूबर, १९२४ ][१]

आज उपवासके अठारह दिन पूरे हो गये; लेकिन [मेरे स्वास्थ्यपर] उसका कोई खास असर हुआ है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। मैं बहुत आनन्दमें हूँ। मेवाकी[२] तबीयत ठीक होती ही नहीं। इसका क्या कारण है, पता लगाना चाहिए। तुम तो कुछ और स्वस्थ हो गये होगे! पैसेकी परेशानी तो अब मिट गई होगी। स्वेच्छासे कातनेवालों की संख्या बढ़ाना। जगन्नाथका उपयोग उनके अपने खास काममें ही करना। पूज्य खुशालभाई[३] और देवभाभीको[४] मेरा दण्डवत् कहना। अभी तो मुझे दिल्लीमें ही रहना है, इसलिए पत्र यहीं, मुहम्मद अली के पतेपर लिखना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०३६) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

१७६. मेरा अवलम्ब

दिल्ली
६ अक्तूबर, १९२४

मेरे प्रायश्चित्त और प्रार्थनाका आज बीसवाँ दिन है। अब मैं फिर शान्ति के राज्यसे निकलकर तूफानी दुनियामें पड़नेवाला हूँ। इसके बारेमें मैं जितना सोचता हूँ अपने-आपको उतना ही अधिक असहाय अनुभव करता हूँ। कितने ही लोग एकता-सम्मेलन द्वारा शुरू किये गये कामको पूरा करने के लिए मेरी ओर आशा भरी नजरोंसे देख रहे हैं। कितने ही लोग राजनीतिक दलोंको एकत्र करनेकी उम्मीद मुझसे रखते हैं। पर जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं कर सकता। ईश्वर ही सब कुछ कर सकता है। प्रभो, मुझे अपना योग्य साधन बना और अपना इच्छित काम मुझसे ले!

मनुष्य कोई चीज नहीं। नैपोलियनने क्या-क्या मनसूबे नहीं बाँधे, पर सेंट हेलेनामें एक कैदी बनकर उसे रहना पड़ा। जर्मन सम्राट् कैसरने समस्त यूरोपका

  1. डाककी मुहरसे।
  2. जमनादास गांधीकी पत्नी।
  3. जमनादास गांधीके पिता
  4. जमनादास गांधीकी माता।